नदियों में नहीं डाला जाए सीवेज से निकला जल : गंगा समग्र
बेगूसराय । गंगा सहित सभी नदियों के उद्धार में जुटे गंगा समग्र ने देश के सभी शहरों में सीवर व्यवस्था सुदृढ़ करने तथा उद्योगों के लिए शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) प्रणाली अनिवार्यता लागू कराने का अनुरोध सरकारों से किया है। दस से 12 फरवरी तक बिहार के बेगूसराय में हुए राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम में उपरोक्त सहित अन्य निर्णय को लागू कराने के लिए गंगा समग्र ने प्रयास तेज कर दिया है।
गंगा समग्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरेन्द्र प्रसाद सिंह उर्फ लल्लू बाबू एवं उत्तर बिहार प्रांत संयोजक और विधान परिषद सदस्य सर्वेश कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि मां गंगा और अन्य माता समान नदियां प्रकृति की वरदान हैं, जिसके तट पर मानव सभ्यता का विकास हुआ है। सनातन काल से नदियों को देवतुल्य मानकर हमने इन संपदाओं का संरक्षण करने का जो प्रण किया था, आज वह प्रण प्रयासों की कमी से धूमिल हो रहा है।
हाल के दशकों में देश में तेजी से हुई शहरीकरण, मानवीय मांग और विकास के परिणामस्वरूप कई समस्याओं ने जन्म लिया है। जोशीमठ में दरकती दरारें यह सिद्ध करती हैं कि प्राकृतिक विवर्तनिकियों की ओर हमारा समाज कितना सीमित है। जोशीमठ में पैदा हुई दरारों से पर्यावरणीय और मानव सभ्यता पर किस प्रकार का प्रभाव है। यह समझना तब और आवश्यक हो जाता है, जब बात प्रकृति और मानव के ह्रास की हो। क्योंकि प्रश्न केवल जोशीमठ के परिदृश्य का नहीं है। बल्कि मुख्य अभिप्राय इस बात का है कि प्रकृति के प्रति हमारी समझ कितनी गंभीर है।
इन आपदाओं को पर्यावरणीय और मानव उत्थान के दृश्य से किस प्रकार अवसर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतवर्ष की जीवन रेखा पतित पावनी मां गंगा का जीवन खतरे में है। गंगा जी अपनी सहयोगी धाराओं के सहयोग से 40 करोड़ से अधिक जनसंख्या और असंख्य जीव-जन्तुओं का पोषण करती हैं। समय के साथ जनसंख्या में वृद्धि, अनियोजित औद्योगिकीकरण और कृषि क्षेत्र में अंधाधुंध रासायनिक प्रयोग के कारण गंगा एवं इसकी सहायक नदियों में प्रदूषक तत्त्वों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
हर दिन सीवेज और औद्योगिक क्षेत्रों से लगभग 350 करोड़ लीटर अपशिष्ट जल सीधे गंगा में बहा दिया जाता है। इससे उनका दम घुट रहा है और उनकी गोद में पलने वाले असंख्य जन्तु वनस्पतियां भी इससे नहीं बच सकते। गंगा की पारिस्थितिकी नष्ट हो रही है, यही स्थिति यमुना आदि नदियों की है। उनके एक हिस्से में व्यावहारिक रूप से कोई भी जलीय जीव पिछले एक दशक से जीवित नहीं रह गया है। उन करोड़ों लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ा है, जिनकी निर्भरता इन नदियों पर है।
गंगा एवं दूसरी नदियों में प्रवाह कम होने और अपशिष्ट जल मिलने से उनकी गुणवत्ता पर व्यापक असर हुआ है। विकृत धार्मिक आस्थाएं और सामाजिक कुप्रथाएं भी गंगा नदी में प्रदूषण को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। नदी के ठीक तट पर शवों का अंतिम संस्कार एवं आंशिक रूप से जले हुए शव नदी में बहाना, धार्मिक कृतियों के निर्माल्य का बड़ी मात्रा में नदी में विसर्जित करना आदि प्रथाएं नदी के जल की गुणवत्ता को नष्ट करती है। सीवेज के प्रबंधन के लिए अभी तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एस.टी.पी.) ही उपाय दिखा है।
इस व्यवस्था से स्थितियां थोड़ी सुधरी हैं। लेकिन एस.टी.पी. के निर्माण की बड़ी लागत, रखरखाव के भारी खर्च और भ्रष्ट आचरण के कारण यह व्यवस्था व्यावहारिक रूप से कारगर सिद्ध नहीं हो पा रही हैं। स्थानीय निकायों में पर्याप्त धन की कमी, बिजली की अनुपलब्धता और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता के कारण कई एस.टी.पी. अधिकांश समय क्रियात्मक ही नहीं रहते। इनसे तथा कथित शोधित जल पुनः नदियों में ही प्रवाहित कर दिए जाते हैं। गंगा किनारे बसे शहरों में बाहरी इलाकों की बड़ी आबादी के घरेलू अपशिष्ट के प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में खुले नालों ने नदी तक खुद ही अपना रास्ता बना लिया है।
उन्होंने कहा कि विगत दस से 12 फरवरी तक बेगूसराय में हुए राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम में इन तमाम मुद्दों पर विस्तार से चिंतन किया गया है। सर्वसम्मति से निर्णय लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों से यह मांग किया गया है कि सभी शहरों में सीवर व्यवस्था को पर्याप्त एवं सुदृढ़ बनाया जाए। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एस.टी.पी.) से निकलने वाले जल को नदियों में नहीं डालकर अन्य कार्य सिंचाई और उद्योग आदि के लिए उपयोग किया जाए।
मां गंगा एवं अन्य नदियों पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की उत्पादन प्रक्रिया के मूल प्रदूषण वाले स्रोतों पर आधुनिक तकनीक युक्त संयंत्र लगा कर कम किया जाए। जिससे पानी का कम उपयोग एवं निम्न प्रदूषित जल उत्पन्न हो। उद्योगों के लिए शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) प्रणाली की अनिवार्यता लागू की जाए। गंगा समग्र सभी गंगा भक्त देशवासियों से निवेदन करता है कि ”गांगेय जलं निर्मलम” अर्थात गंगा का जल निर्मल हो, यानी भारत की सभी नदियों का जल निर्मल हो।