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वृन्दावन का हृदय स्थल “दिव्य सेवाकुन्ज”

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वृन्दावन से राधा कृष्ण शर्मा
सेवा कुन्ज वृन्दावन की घनी आवादी वाले क्षेत्र के बीचो बीच स्थित है  श्री यमुना जी का किनारा नजदीक है। जिससे श्रद्धालुओं का आना जाना  यहा निरन्तर बना ही रहता है। यह स्थान अति प्रचीन है।
श्रीमद भागवत पुराण मे योगी राज “क्रष्ण” और गोपियो के महारास की विस्तृत चर्चा आती है। जिससे पता चलता है की वृन्दावन मे उस काल मे भयानक जंगल था। श्री शुकदेव जी महाराज और  राजा परीछित के प्रसंगो के अलावा भागवत के द्वारा कई प्रमाडिक जानकारीया प्राप्त होती हैं।
बात जब महारास की हो तो वृन्दावन की चर्चा तो सहज ही हो जाती है। बात जव महारास या रास लीला का प्रसंग आये तो “श्री  राधा रानी” की इसम्रति अवश्य मन और मस्तिस्क मे होने लगती है* जब श्री राधा रानी की स्मृती और इस्र्फुर्ती होती है तो श्री राधा बल्लभ सम्प्रदाय का नाम अवश्य आ ही जाता है। *जब श्री राधा बल्लभ सम्प्रदाय का नाम  हो तो फिर इसके प्रवर्तक श्री कृष्ण  की वंशी के अवतार महा प्रभू हित हरिवंश चंद्राचार्य का नाम  हमारी जीभ पर स्वतः ही आने लगता है।
श्री राधा बल्लभ सम्र्पदाय का नाम आते ही बडा रासमंडल और सेवाकुज का नाम बिना बताए ही वृन्दावन का नाम लेने लगता है। जी हा, बडा रास मंडल और सेवा कुन्ज दोनो ही यमुना किनारे छेतिज मे एक ही रेखीय आकृति मे है। इन दोनो पवित्र स्थ्लो के बीच केवल एक फर्लांग की दूरी है। इस दूरी को कभी यमुना जल ही स्वयं अपनी निर्मल धारा से जोड़ता था।
जहा तक सेवा कुन्ज का छेत्र था वहा से बड़े रास मंडल के सीमा इसपर्श करती थी। आज कल तो दोनो के बीच ईट पतथरो से निर्मित इमारते बनने से दोनो एक दूसरे से दूर हो गये है वस एक सडक इन दोनो को जोडती है।
भागवत महा पुराण ने यह सूचना तो यहा तक दी है कि महारास वृन्दावन मे हुआ था। परंतु श्री राधा रानी के निज निकुज महल की सूचना को गोपनीय रखा। शिव पार्वती ने भी इस निज महल को जानते हुए गोपनीय रखा*। श्री राधा रानी की क्रपा से ही महा प्रभु हित हरिवंश गोस्वामी पाद ने इस निकुज भवन को इसलिय चिन्हित कर दिया ताकि कलयुग के भक्तो को श्री राधा रानी की क्रपा का प्रसाद प्राप्त होता रहे।
सेवा कुन्ज और बड़े रास मंडल की खोज श्री हिताचार्य ने एक साथ एक ही दिन की थी। हिताचार्य बृज मंडल मे अवतरित होने के बाद कुछ समय के लिये बृज से दूर चले गय्रे। *श्री राधा रानी के आदेश पर वे जब वृन्दावन आये तब श्री यमुना ने श्री राधा रानी का ध्यान किया*।
श्री राधा रानी ने उन्ह्रे महारास स्थल- बड़े रास मंडल- शृगारवट,बन्शीवट आदि की पहिचान बताई*।ततपश्तात श्री राधा रानी ने निज कुन्ज भवन की उन्हे जानकारी दी।
श्री हिताचार्य ने प्रतीछन रासलीलाओ का दर्शन किया करते रह्ते थे  गुरुश्री राधा रानी से साक्षत्कार  करते रह्ते ध्यान मे दुबे रह्ते थे*। हिताचार्य का प्रादुर्भाव काल आजसे छह सौ वर्ष पूर्व  मना जाता है। यह काल भारतीय जन मानस  मे मध्य काल के नम से प्रसिध्द है।
श्री हिताचार्य ने श्री राधा रानी से प्रेरित होकर महारास स्थली को खोजने के बाद  ब्रज वासी बालको का स्वरुप बनाकर उसी स्थल पर *रास लीला का मंचन अनेको शिध्ह सन्तो की उपस्थिती मे किया। वह दिन वृन्दावन के लिये गौरव का दिन था*।
रास लीला विश्राम के बाद श्री हिताचार्य ने थोडी दर स्थित स्थल पर श्री यमुना किनारे स्स्थिति सघन ब्रिच्छाबली से डके हुए नितात गोपनीय स्थान पर श्री राधा रानी के निकुंज भवन और  उनकी सहचरियो के दर्शन किये।
अब तो उन्होने अपने आराध्य ठाकुर श्री राधा बल्लभ लाल जी के दिव्य विग्रह को इस दिव्य स्थल पर ला कर ही विराजित कर दिया। कई वर्षो तक इसी निकुज स्थल पर लाकर ही विराजित कर दिया। कई वर्षो तक इसी निकुज मे ठाकुर जी की सेवा और  वर्षोत्सव  मनाते रहे। यही दिव्य स्थल आज सेवा कुन्ज के नाम  से जाना जाता है।
(सेवा कुंज वृन्दावन के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिरों में से एक है, ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थल है जहाँ भगवान क़ृष्ण राधा गोपियों के साथ रासलीला रचते थे)
क्रमश: ………

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