विदेश

दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं इमरान

पाकिस्तान में एक बार फिर से बड़े स्तर पर सियासी तमाशा शुरू हो चुका है। इमरान खान ने शाहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ अपने आजादी मार्च की शुरुआत कर दी है। डैमेज कंट्रोल के हिसाब से पाकिस्तान सरकार ने न्यूज चैनल्स को इमरान के मार्च की कवरेज करने से रोक दिया। लेकिन इसके पहले ही इमरान खान ने एक अच्छा-खासा बखेड़ा कर दिया। लाहौर से उन्होंने अपने ही देश की खुफिया एजेंसी आईएसआई के नाम खुल्लम-खुला चेतावनी जारी कर दी। इमरान ने कहा कि वो बहुत कुछ जानते हैं और चाहे तो पोल खोल सकते हैं। एक दिन पहले ही आईएसआई चीफ ने इमरान को झूठा और दोहरे चेहरे वाला शख्स करार दिया था। किसी नेता के खिलाफ सेना और आईएसआई चीफ बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये बाते कहते हुए नजर आए थे। ऐसा नजारा केवल और केवल पाकिस्तान में ही देखने को मिल सकता है।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान 28 अक्टूबर को लाहौर से इस्लामाबाद तक “लॉन्ग मार्च” निकाला। अगर मार्च को पूरा करने की अनुमति दी जाती है, तो इमरान को 4 नवंबर को यानी एक हफ्ते में पाकिस्तानी राजधानी पहुंचने की उम्मीद है। इमरान की पार्टी,पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने कहा है कि वह “हकीकी आजादी” या सच्ची आजादी के लिए मार्च कर रही है। इमरान को उम्मीद है कि जल्दी चुनाव कराने के लिए मजबूर किया जाएगा।

केन्या में पत्रकार की हत्या कऔर इमरान ने मार्च निकालने का फैसला किया

इस साल अप्रैल में संसद में एक अविश्वास मत से बाहर किए गए इमरान ने महीनों में अपनी लोकप्रियता में वृद्धि देखी है। खासकर जब उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें पद से हटाने की योजना संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और विपक्षी दलों के साथ मिलकर बनाई गई थी। पाकिस्तानियों के एक बड़े हिस्से में अमेरिका विरोध की भावना दबी-छुपी होती है। इमरान खान ओसामा बिन लादेन को “शहीद” कहकर नियमित रूप से इस नस को दबाते रहते हैं। पाकिस्तानी पत्रकार व टीवी एंकर अरशद शरीफ की केन्या की राजधानी नैरोबी में हत्या कर दी गई। उनके खिलाफ हाल ही में देशद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था। उन्होंने सेना प्रमुख जनरल बाजवा की कई बार आलोचना की थी। इस्लामाबाद में शरीफ के अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए। इमरान, जिन्होंने यह घोषणा की थी कि उन्होंने ही शरीफ को देश से भागने की सलाह दी थी, उन्होंने इस पल को बर्बाद नहीं करने का फैसला किया है। उन्होंने शरीफ और उनके परिवार को न्याय दिलाने की मांग को अपना मकसद मान लिया है। पहले मार्च निकालने के लिए नवंबर के पहले सप्ताह का समय तय था, लेकिन सटीक तारीख तय नहीं की गई थी। फिर इस सप्ताह की शुरुआत में जैसे ही शरीफ की मौत से लोगों में आक्रोश देखने को मिला। इमरान ने निकलने के लिए 28 अक्टूबर की तारीख तय कर दी।

इमरान सेना कैसे आए साथ और क्यों अलग हो गए?

इमरान खान की जीत और उसके बाद उनकी सरकार के गठन में अहम योगदान दिया था। हालाँकि, सेना और इमरान बीच रास्ते में अलग हो गए। इसके लिए कई मुद्दे जिम्मेदार थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण इमरान का पूर्व आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को उस पद पर बनाए रखने की जिद थी। जनरल बाजवा ने अपना रास्ता बना लिया, और लेफ्टिनेंट जनरल हमीद को पेशावर कोर के कमांडर के रूप में हटा दिया गया। इमरान के पास हमीद को आईएसआई का बॉस बनाए रखने के अपने कारण थे। उन्होंने वास्तविक रूप से आकलन किया था कि 2023 में उनके फिर से चुनाव में जीत की संभावना कम थी। शासन पर उनका रिकॉर्ड खराब था, और संयुक्त विपक्ष के पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट (जो अब प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन है) ने उनके इस्तीफे और जल्द चुनाव की मांग करते हुए एक व्यापक लोकप्रिय अभियान चलाया था। उन्होंने यह भी गणना की कि भले ही बाजवा और वो एक पिच पर नहीं थे, सेना प्रमुख नवंबर 2022 में सेवानिवृत्त होने वाले थे। हमीद उन्हें दूसरी जीत दिलाने में मदद करें।

इमरान का प्लान बी: ​​”कांकड़ फॉर्मूला” को किया शुरू

इमरान खान भले ही राजनीतिक हालातों की वजह से सत्ताबदर हो गए। लेकिन पाकिस्तानियों के उनके पीछे बड़ी संख्या में रैली में मौजूद होने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री को अब लगने लगा है कि वो अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं। इस महीने की शुरुआत में हुए संसदीय उपचुनावों में उनकी सफलता ने उनके आत्मविश्वास को और बढ़ाया है। इसके तुरंत बाद, पाकिस्तान चुनाव आयोग ने इस साल की शुरुआत में एक शिकायत पर उन्हें निर्वाचित पद से अयोग्य घोषित करने का फैसला सुनाया। इमरान को लगता है कि यह एक छोटी सी बाधा है जिसे वो अदालतों के माध्यम से पार कर लेंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कब तक सार्वजनिक पद से अयोग्य घोषित किया गया है, और यदि बार अगले चुनाव तक विस्तारित होता है। हाल के दिनों में, “काकर फॉर्मूला” शब्द पाकिस्तानी मीडिया में बार-बार सामने आया है, जिसमें इमरान अपने लंबे मार्च के माध्यम से जबरदस्ती करने का लक्ष्य रखते हैं। वहीद कांकड़ 1993 से 1996 तक सेना प्रमुख थे और जिन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच बढ़ते राजनीतिक गतिरोध को कम करने के लिए कदम रखा था। बेनजीर भुट्टो ने इस्लामाबाद की सड़कों पर लॉन्ग मार्च का नेतृत्व किया था और फिर जनरल कांकर ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों को इस्तीफा देने के लिए कहा था। पाकिस्तानी टेक्नोक्रेट के तहत एक कार्यवाहक सरकार नियुक्त की गई थी। इस सरकार ने उसी साल अक्टूबर में नए सिरे से चुनाव कराने का आह्वान किया। कांकड़ और कार्यवाहक सरकार दोनों के तटस्थ रहने से बेनजीर ने वह चुनाव जीता।

सेना ने किया पलटवार

सेना पर लगे आरोपों की सफाई देने के लिए आईएसआई चीफ नदीम अंजुम खुद सामने आए। अंजुम ने पहली बार मीडिया से बात करते हुए कहा कि इस एजेंसी (आईएसआई) के प्रमुख के रूप में मैं चुप नहीं रह सकता। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का नाम लिए बगैर आईएसआई प्रमुख ने कहा कि मार्च में जनरल बाजवा को उनके कार्यकाल में अनिश्चितकालीन विस्तार के लिए आकर्षक प्रस्ताव दिया गया था।

JAN EXPRESS

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