कानपुर प्रशासनिक संग्राम: डीएम बनाम सीएमओ की जंग ने पकड़ा जातीय रंग

जन एक्सप्रेस/कानपुर: कानपुर में जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के बीच महीनों से जारी तनाव अब खुलकर सड़कों और सियासत में उबाल पैदा कर चुका है। इस जंग ने अब प्रशासनिक विवाद से निकलकर जातीय संघर्ष का रूप ले लिया है। दलित बनाम ठाकुर की बहस ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है।
निलंबन से भड़के सीएमओ, लगाए गंभीर आरोप
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. हरिदत्त नेमी का हाल ही में निलंबन हुआ, लेकिन इसके बाद उन्होंने जो खुलासे किए, उसने प्रशासनिक गलियारों में भूचाल ला दिया। डॉ. नेमी ने सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर डीएम जितेन्द्र प्रताप सिंह पर जातिसूचक शब्द कहने, रिश्वत मांगने, और एक सीबीआई चार्जशीटेड कंपनी को ठेका दिलवाने का दबाव बनाने जैसे गंभीर आरोप लगाए।
“मैं अनुसूचित जाति से हूं, इसीलिए मुझे निशाना बनाया गया। जब मैंने गलत कामों का विरोध किया, तो मुझे ही सस्पेंड कर दिया गया,” — सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमी की चिट्ठी का आरोप।
सीएमओ बोले — ठेका दिलाने का दबाव था, मना किया तो बनाया गया निशाना
डॉ. नेमी के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग के एक संवेदनशील ठेके को लेकर उन पर दबाव बनाया गया कि वे उसे एक ऐसी कंपनी को दें, जो सीबीआई की चार्जशीट में नामजद है। उनका कहना है कि उन्होंने जब इस पर आपत्ति जताई तो उन्हें धमकाया गया और अंततः कार्रवाई की गई।
भाजपा विधायक खुलकर सीएमओ के खिलाफ, विपक्ष ने पकड़ा जातीय मुद्दा
डॉ. नेमी के आरोपों के बाद, भाजपा के पांच विधायकों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, जिसके बाद ही उनका निलंबन हुआ। वहीं, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस पूरे मामले को दलित उत्पीड़न का मामला बताते हुए सरकार पर हमलावर हो गई हैं।
“भाजपा राज में दलितों की कोई सुनवाई नहीं होती। ये ठाकुर बनाम दलित की असली तस्वीर है,” — समाजवादी पार्टी का ट्वीट।
दूसरी ओर, भाजपा के नेताओं ने इसे सिर्फ प्रशासनिक अनुशासन का मामला बताते हुए आरोपों को राजनीतिक रंग देने की साजिश करार दिया।
बड़े सवाल, जिनके जवाब अभी बाकी हैं…
क्या उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक निर्णय जातीय पूर्वग्रह से प्रभावित हो रहे हैं?
क्या डॉ. नेमी का विरोध करना ही उनके निलंबन की वजह बना?
क्या यह मामला भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी का है या ठाकुर बनाम दलित का?
और सबसे अहम — क्या जनता की सेहत से जुड़ी जिम्मेदारियां अब जातीय राजनीति की भेंट चढ़ेंगी?
बहरहाल यह लड़ाई अब दो अधिकारियों के बीच की नहीं रही। यह एक बड़ा राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक सवाल बन चुकी है। योगी सरकार के लिए यह मामला एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं। सीएमओ के गंभीर आरोपों पर यदि निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो यह विवाद आने वाले दिनों में और अधिक राजनीतिक उबाल ला सकता है।