जानिए,सपिंड विवाह पर दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों लगाई रोक…
दिल्ली: हिंदू धर्म में शादी परंपराओं के दौरान लड़का लड़की से उनका गोत्र अक्सर पूछा जाता है. ये इसलिए पूछा जाता है कि कहीं दोनों एक ही गोत्र के न हों. हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में शादी करने की मनाही है और हिंदू मैरिज एक्ट में ऐसी शादियों को निषेध माना जाता है.
ऐसा ही समान गोत्र में शादी करने का एक मामला दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के चलते सुर्खियों में आ गया. सपिंड विवाह पर चर्चाएं तेज होने लगी. यहां हम आपको विस्तार से आसान भाषा में समझाते हैं कि आखिर सपिंड विवाह होता क्या है, क्यों दिल्ली हाईकोर्ट ने लगा दी रोक, भारत के संविधान में क्यों नहीं है इजाजत और कुछ समुदायों में रिश्तेदारी में शादी करने की क्यों चली आ रही परपंरा.
पहले समझते हैं क्या होता है सपिंड विवाह
भारत के संविधान में सभी लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं. इसमें अपनी पसंद के लड़के या लड़की से शादी करना भी एक मौलिक अधिकार है. जाति, धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकता है. ये मौलिक अधिकार होने के बावजूद कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती. सपिंड विवाह इसी का हिस्सा है.
सपिंड वे रिश्तेदार होते हैं जिनके पूर्वजों का कुछ पीढ़ियों तक का खून एक ही होता है. यानी कि जिन परिवारों के पूर्वजों ने शादी कर आपसी रिश्ते बनाए उनके वंशजों के बीच हुए विवाह को सपिंड कहा जाता है. जम्मू-कश्मीर के अलावा भारत के सभी राज्यों में सपिंड विवाह निषेध है.
और आसान भाषा में समझिए. अगर किसी ऐसे लड़के या लड़की की शादी होती है जिसके पांच पीढ़ी तक पूर्वज एक ही थे तो उन दोनों को आपस में सपिंड कहा जाता है. ऐसी शादी करना पाप भी माना जाता है और कानून के खिलाफ भी.
क्यों बनाया गया सपिंड विवाह निषेध
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5(वी) स्पष्ट रूप से सपिंड विवाह को अमान्य घोषित करती है. ये धारा दो हिंदूओं को शादी करने से रोकती है अगर वे सपिंड हैं. धारा के अनुसार, कोई भी दो हिंदू व्यक्ति अगर वे एक-दूसरे के सपिंड नहीं हैं, तो कानूनी तौर पर विवाह कर सकते हैं.
हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों और पापा की तरफ से पांच पीढ़ियों तक के किसी रिश्तेदार से शादी नहीं कर सकते हैं. यानी नाना-परनाना, दादा-परदादा और उनके भी दादा के किसी रिश्तेदार से शादी करने पर पाबंदी है.
कानून की नजर में ऐसी शादी अवैध है. लड़का या लड़की दोनों में से कोई भी अगर अदालत का दरवाजा खटखटाता है तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित किया जा सकता है. मतलब कि ऐसी शादी को कभी नहीं हुआ माना जाएगा.
क्या नियम में किसी तरह छूट मिल सकती है?
हां, अगर किसी खास समुदाय में अपने चाचा-चाची या मामा-मौसी के रिश्तेदारों में शादी करने का रिवाज है तो उन्हें कानूनन उस शादी की इजाजत दी जा सकती है. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(ए) में रिवाज का जिक्र किया गया है. कुछ शर्तों के साथ नियम में छूट मिल सकती है.
कानून के अनुसार, अगर किसी हिंदू समुदाय में लंबे समय से पीढ़ियों से लगातार बिना रुके सपिंड विवाह का रिवाज चला आ रहा है तो उन्हें इसका अधिकार है. मगर रिवाज चला आना ही काफी नहीं है. शर्त ये भी है कि ये परंपरा समाज के हितों के खिलाफ नहीं होनी चाहिए. इस पर परिवार, क्षेत्र या कबीले में किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए और ये परंपरा आज भी मान्य होनी चाहिए. अगर इन सभी शर्तों को पूरा किया जाता है तो कानूनी तौर पर सपिंड विवाह को मान्यता दी जा सकती है.