शारदीय नवरात्रि 2022: बस 6 दिन बाद शुरू हो जाएंगे नवरात्र
ऩई दिल्ली: आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त दशमी तक मां भगवती को पूजने ,मनाने, एवं शुभ कृपा प्राप्त करने का सबसे उत्तम समय है। आश्विन मास में पड़ने वाले इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्र की विशेषता है कि हम घरो में कलश स्थापना के साथ-साथ पूजा पंडालों में भी स्थापित करके माँ भगवती की आराधना करते है।
उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि इस शारदीय नवरात्र की शुरूआत उदय कालिक प्रतिपदा तिथि 26 सितंबर 2022 दिन सोमवार से होगा । प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है। कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना उत्तम होता है। इसलिए इस दिन कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त्त पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है।
★इस वर्ष कलश स्थापना के लिए दिन भर का समय शुद्ध एवं प्रशस्त है शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना कराना तथा देवी चरित्र का पाठ सुनना मनुष्य को सभी प्रकार के बाधाओं से मुक्त करते हुए धन-धन पुत्र आदि से संपन्न करते हुए विजय को प्रदान करता है ।अभिजीत मुहूर्त्त सभी शुभ कार्यो के लिए अति उत्तम होता है। जो मध्यान्ह 11:36 से 12:24 तक होगा।
शुभ चौघड़िया:-
सुबह 6:00 से 7:30 बजे तक
सुबह 9:00 बजे से 10:30 बजे तक
दोपहर 1:30 से 6:00 बजे तक
घरों में माता के आगमन का विचार :- देवी भागवत पुराण के अनुसार
शशिसूर्ये गजरूढा शानिभौमे तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता
नवरात्र की शुरुआत सोमवार से हो रहा है अतः माता का घरों में आगमन गज की सवारी पर होगा। जो राष्ट्र की जनता के लिए सामान्य फल दायक एवं वर्षा कारक होगा। आम जन के स्वास्थ्य एवं धन पर सामान्य प्रभाव पड़ता है।
पूजा पंडालों में माता के आगमन का विचार सप्तमी तिथि के अनुसार किया जाता है एवं गमन के विचार दशमी तिथि में । सप्तमी तिथि को रविवार होने से बंगिया पद्धति के अनुसार देवी का आगमन हाथी पर होगा। इस प्रकार घरों में एवं पूजा पंडालों में माता का आगमन हाथी पर हो रहा है। जो राष्ट्र के राजा के विरुद्ध आम जनमानस का एकत्रीकरण ,अत्यधिक वर्षा , राजनेताओं के मध्य वाक युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। फिर भी माँ का आशीर्वाद हम सभी के लिए शुभ कारक ही होगा।
4 अक्टूबर दिन मंगलवार को ही अपरान्ह काल में दशमी तिथि प्राप्त होने के कारण विजयदशमी के पर्व का मान भी हो जाएगा अतः देवी का प्रस्थान अथवा गमन चरणा युद्ध अर्थात मुर्गा पर होगा जो ज्यादा शुभ फलदायक नहीं होता है अपितु राष्ट्र में तनाव की स्थिति को उत्पन्न करने वाला साबित होगा।
अष्टमी की महानिशा पूजा 2 अक्टूबर दिन रविवार को रात में होगी ।
महा अष्टमी का व्रत पूजा 3 अक्टूबर दिन सोमवार को होगी एवं संधि पूजा का समय दिन में 3:36 से लेकर के 4:24 तक का होगा।
महा नवमी का मान 4 अक्टूबर दिन मंगलवार को होगा एवं पूर्व नवरात्रि के समापन का हवन पूजन में नवमी तिथि पर्यंत दिन में 1:32 बजे तक कर लिया जाएगा । नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि में प्रातः काल 5 अक्टूबर दिन बुधवार को किया जाएगा साथी इसी दिन श्रवण नक्षत्र युक्त दशमी तिथि में देवी प्रतिमाओं का विसर्जन भी कर दिया जाएगा।