वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना के खिलाफ याचिका पर सुनवाई में हंगामा
याचिकाकर्ता और अधिवक्ता पर हमला, कोर्ट में अफरातफरी

जन एक्सप्रेस/लखनऊ/वृंदावन। वृंदावन के एक प्रतिष्ठित आश्रम पर कथित अवैध कब्जे और उसमें शामिल भ्रष्ट अधिकारियों व भूमाफियाओं को संरक्षण देने के आरोप में दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान बुधवार को एमपी-एमएलए विशेष अदालत में भारी हंगामा हो गया। इस याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना को पक्षकार बनाया गया है।
याचिकाकर्ता कथावाचक कौशल किशोर ठाकुर द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रीना सिंह विशेष रूप से दिल्ली से लखनऊ की अदालत में पेश हुईं थीं। सुनवाई के दौरान माहौल उस समय तनावपूर्ण हो गया जब याचिकाकर्ता पक्ष ने आरोप लगाया कि मंत्री खन्ना के समर्थन में उपस्थित सरकारी अधिवक्ता (एपीओ) ने न केवल बहस के दौरान दवाब बनाने की कोशिश की, बल्कि कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए गुंडों के माध्यम से हमला भी करवाया।
याचिकाकर्ता के आरोप: “कोर्ट में जानलेवा हमला, पुलिस मूकदर्शक”
कौशल किशोर ठाकुर ने बताया कि जैसे ही उनके अधिवक्ता ने भ्रष्टाचार और मंत्रिपरस्त अधिकारियों के खिलाफ दलीलें रखनी शुरू कीं, तभी सरकारी पक्ष के अधिवक्ता ने न सिर्फ अपशब्द कहे, बल्कि अपने साथ लाए दर्जनों संदिग्ध युवकों को हिंसा के लिए उकसाया। याचिकाकर्ता और उनकी टीम को कोर्ट परिसर से बाहर खदेड़ते हुए हमला किया गया। इस पूरे घटनाक्रम की शिकायत थाना सदर पुलिस को लिखित रूप में दी गई है।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उन्हें पहले भी मंत्री के कथित गुर्गों द्वारा जान से मारने की धमकियाँ मिल चुकी हैं। “यदि न्यायालय परिसर में ही याचिकाकर्ता और अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती, तो आम जनता को न्याय की उम्मीद कैसे होगी?” – उन्होंने यह सवाल भी उठाया।
प्रशासन और सुरक्षा पर उठे सवाल
इस हमले ने न्यायपालिका की सुरक्षा और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस विशेष अदालत को विधायकों और सांसदों के मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित किया गया था, वहां यदि इस प्रकार की घटनाएं होती हैं, तो यह आम नागरिकों की न्यायपालिका पर आस्था को गहरा आघात पहुँचा सकती हैं।
क्या कहती है पुलिस?
इस मामले में पुलिस प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है। न ही यह स्पष्ट है कि मंत्री खन्ना के पक्ष से आए अधिवक्ता और कथित हमलावरों के विरुद्ध कोई प्राथमिकी दर्ज हुई है या नहीं।
विपक्ष ने भी उठाए सवाल
वहीं राजनीतिक गलियारों में इस घटना की गूंज सुनाई देने लगी है। विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार पर न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने और विरोधियों को डराने-धमकाने का आरोप लगाया है।
यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत हमले की कहानी है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था, प्रशासनिक तटस्थता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गहराते संकट की तस्वीर भी पेश करती है। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच और कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तो आने वाले समय में न्यायालय परिसर भी राजनीतिक दबाव और हिंसा से सुरक्षित नहीं रह पाएगा।