चित्रकूट

मंदाकिनी को प्रदूषण मुक्त बनाने यूथ आइकॉन ने अपने खून से लिखा पत्र

  • यूथ आइकॉन अनुज हनुमत ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

 

  • आखिर कितनी गहरी नींद में मस्त हैं जिम्मेदार?
रिपोर्ट – सचिन वन्दन 

 

चित्रकूट। जिम्मेदार कितनी गहरी नींद में मस्त हैं कि , चित्रकूट की लाइफ लाइन मंदाकिनी को बचाने के लिए जागरूक युवाओं को अपने खून से पत्र लिखना पड़ रहा है। इसके बाद भी अपनी जिम्मेदारी संभालने वाले अपने कर्तव्य पथ से भाग रहे हैं। इससे जिम्मेदारों की संजीदगी का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। जनता ने जिन्हें वोट देकर क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी दी है उनसे कोई लेना देना तो है नहीं बल्कि उनका काम कर रहे जागरूक युवाओं का समर्थन करने के बजाय आंतरिक विरोध किया जा रहा हैं। चित्रकूट की जीवनदायिनी आज प्रदूषण के चलते अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। मंदाकिनी दिन-ब-दिन मैले आंचल को लेकर सिसकियां भर रही है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह सभी है कि,आखिर रामघाट में प्रतिदिन आरती किसकी हो रही है? अंतिम सांसें गिन रही मंदाकिनी की ? तो फिर इससे बड़ी शर्म की और क्या बात हो सकती है। आखिर जिम्मेदार कितनी गहरी नींद में मस्त हैं ?

 

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन तपस्थली पवित्र नगरी चित्रकूट धाम में महासती अनुसुइया के तपोबल प्रभाव से उद्गमित होकर बहने वाली पावन पुण्य सलिला पवित्र नदी मंदाकिनी वर्तमान समय में अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहीं है।जीवनदायिनी मंदाकिनी नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। नदी में प्रमुख घाटों पर अधिक गंदगी होने एवं हानिकारक वस्तुओं का भारी जमाव हो चुका है। कारण है कि, लगभग एक सैकड़ा सीधे जाकर पवित्र नदी में मिलने वाले प्रदूषित नाले और चित्रकूट में नदी किनारे बने बड़े-बड़े मठ मंदिरों और होटल रेस्टोरेंट से निकलने वाले गंदे पानी के द्वारा पवित्र नदी की हालत बिगाड़कर रख दी गई है। वर्तमान समय में अगर यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि “पवित्र नदी मंदाकिनी” तिल -तिल कर मृत्यु को प्राप्त हो रही है। तिल तिल कर मर रही पवित्र नदी मंदाकिनी को बचाने चित्रकूट के यूथ आइकॉन अनुज हनुमत ने अपने खून से यूपी और एमपी के मुख्यमंत्रियों सहित देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा गया है। अनुज हनुमत ने कहा कि भगवान श्री राम की पावन तपस्थली पवित्र नगरी चित्रकूट धाम सदैव से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है। महासती अनुसुइया द्वारा अपने तपोबल से पवित्र नदी मंदाकिनी को उद्गमित किया गया था।ऐसा शास्त्रों और पुराणों में वर्णन मिलता है। वही पवित्र नदी मंदाकिनी वर्तमान समय में अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहीं है।जहां वर्तमान समय में लगभग एक सैकड़ा नाले सीधे नदी में गिरकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं। तो वही नदी किनारों पर लगातार अतिक्रमण के चलते नदी के जल श्रोत धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी उनके द्वारा प्रधानमंत्री को खून से पत्र लिखा जा चुका है।साथ ही कई बार यूपी और एमपी के प्रशासन को भी अवगत करवाया जा चुका है। बावजूद आज तक कोई ठोस हल नहीं निकल सका है। अतः एक बार पुनः यूपी और एमपी के मुख्यमंत्रियों सहित देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खून से पत्र लिखकर पवित्र नदी मंदाकिनी को बचाने की गुहार लगाई जा रही है।अनुज हनुमत ने कहा कि तिल तिल कर मर रही पवित्र नदी को बचाने की दिशा में अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया,तब फिर चित्रकूट के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह उठ खड़ा हो जाएगा।पूर्व में भी अनुज हनुमत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बाबत पत्र लिखा था और वो लगातार मंदाकिनी नदी को पुनर्जीवित करने हेतु प्रयासरत हैं।

 

नदियों को स्वच्छ रखना सबकी जिम्मेदारी

 

चित्रकूट के सामाजिक चिंतक गणेश मिश्र कहते हैं नदियां हमारी प्यास बुझाने के साथ ही पानी से जुड़ी हर आवश्यकताओं की पूर्ती करती है। नदियों को बड़े श्रध्दा के साथ हम पूजते हैं। इसलिए नदियों को स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी बनती है। नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए हमें प्लास्टिक की थैलियां, बोतल या अन्य सामग्री नदियों में या उनके किनारे नहीं फेंकना चाहिए। इससे कचरा उड़कर नदियों में चला जाता है। नदियों को साफ रखना चाहिए। नदियों में सिर्फ मिट्टी की ही मूर्तियां विसर्जित करनी चाहिए। मूर्तियों में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें। उद्योगों का रसायन मिला पानी, सीवरेज का पानी नदियों में नहीं जाना चाहिए। नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सभी को जागरूक होना होगा।

जल शुद्धीकरण संयंत्र लगाए जाएं

युवा समाजसेवी विनय द्विवेदी ने कहा मां मंदाकिनी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सर्वप्रथम नदी में मिलने वाले नालों को बंद करना चाहिए। नदी के आसपास बने मठ-मंदिर और होटल, रेस्टोरेंट इत्यादि से नदी में मिलने वाले गंदे नालों पर पूरी तरह पाबंदी लगनी चाहिए। साथ ही जल शुद्धीकरण संयंत्रों का उपयोग होना चाहिए जिससे नदी में साफ जल ही पहुंचे।

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