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क्या पान मसाला का राजस्व, जीवन और स्वच्छता से ज्यादा महत्वपूर्ण है ?

उत्तर प्रदेश में पान मसाला पर टैक्स, मौत और दाग के पीछे छिपी सच्चाई

जन एक्सप्रेस/लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार को पान मसाला की बिक्री से हर वर्ष करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। ब्रांडेड पान मसाला पर 28% GST और 60% तक सेस लगता है। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी पान मसाला की खुदरा कीमत ₹100 है, तो उस पर ₹28 GST और ₹60 सेस लग सकता है — कुल ₹88 टैक्स।

GST में राज्य सरकार को 14% SGST का हिस्सा प्राप्त होता है, जबकि सेस की पूरी राशि केंद्र सरकार को जाती है। इस प्रकार राज्य को औसतन हर ₹100 की बिक्री पर ₹14 का प्रत्यक्ष राजस्व मिलता है। लेकिन सवाल यह है- क्या यह राजस्व, जनस्वास्थ्य और सार्वजनिक स्वच्छता से अधिक मूल्यवान है?

सार्वजनिक संपत्तियों पर थूक के दाग

उत्तर प्रदेश की सड़कों, सरकारी इमारतों, रेल प्लेटफॉर्म और दीवारों पर पान मसाले की थूक से लाल दाग आम हो चुके हैं। नगर निगम और स्वच्छता कर्मी दिन-रात इन दागों को हटाने में लगे रहते हैं, जिस पर प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च होते हैं। साफ-सफाई में लगाया गया यह खर्च, कई बार उस टैक्स से अधिक हो सकता है जो राज्य को पान मसाले की बिक्री से प्राप्त होता है।

कैंसर और मौत की कीमत

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि पान मसाले के सेवन से होने वाले मुँह के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हर वर्ष हजारों लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवाते हैं। ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री राहत कोष या सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों के इलाज पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। यह खर्च भी राज्य पर एक परोक्ष बोझ बन जाता है।

सवालों के घेरे में नीति

सरकार एक ओर “स्वच्छ भारत” और “तंबाकू मुक्त भारत” जैसे अभियानों को बढ़ावा देती है, वहीं दूसरी ओर पान मसाला कंपनियों से राजस्व भी एकत्र करती है। यह विरोधाभास समाज में गलत संदेश देता है।

समाधान की दिशा में कदम

विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि- पान मसाला की ब्रांडेड बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर कड़े जुर्माने के साथ समाज सेवा जैसे दंड दिए जाएं।

पान मसाले की बिक्री से होने वाले राजस्व का उपयोग कैंसर जागरूकता और स्वच्छता मिशनों में हो। राजस्व की लोलुपता में यदि सरकार जनस्वास्थ्य और स्वच्छता से समझौता करती है, तो यह नीति दूरगामी नुकसान पहुंचा सकती है। अब समय आ गया है कि पान मसाला पर निर्भर राजस्व मॉडल को पुनः सोचा जाए, और एक स्वस्थ, स्वच्छ और सचेत समाज की दिशा में नीति निर्माताओं को ठोस निर्णय लेने चाहिए।

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