ऋषिकेश से कट सकता है गढ़वाल, बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा पर संकट

जन एक्सप्रेस/नई टिहरी : उत्तराखंड में एक बार फिर प्रकृति की नाज़ुक संरचना ने चिंता बढ़ा दी है। ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित तोताघाटी की पहाड़ी में कई स्थानों पर ढाई से तीन फीट चौड़ी और सैकड़ों मीटर गहरी दरारें पाई गई हैं। भूगर्भ विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इन दरारों का फैलाव बढ़ा तो पूरी पहाड़ी का एक हिस्सा खिसक सकता है, जिससे बदरीनाथ और केदारनाथ सहित पूरे गढ़वाल क्षेत्र का ऋषिकेश से संपर्क कट सकता है।
गढ़वाल की ‘लाइफलाइन’ पर मंडरा रहा है संकट
वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक और हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभागाध्यक्ष प्रो. महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट के अनुसार, तोताघाटी की पहाड़ियाँ चूना पत्थर से बनी हैं, जो समय के साथ दरकती रहती हैं। उन्होंने बताया कि इन दरारों की गहराई का सही अनुमान अभी संभव नहीं है, लेकिन ये सतही नहीं, संरचनात्मक दरारें हैं, जो पहाड़ी की आंतरिक मजबूती को भी प्रभावित कर रही हैं।
चार दरारें, तीन फीट तक चौड़ाई, गहराई अनिश्चित
विशेषज्ञों ने बताया कि जिस बिंदु से यह सड़क पहाड़ी को पार करती है, उसके लगभग 300 मीटर ऊपर चार मुख्य दरारें पाई गई हैं। ये दरारें कई महीनों से बनी हुई हो सकती हैं, लेकिन उनका सक्रिय होना हाल में सामने आया है। इन दरारों की चौड़ाई ढाई से तीन फीट तक है, और गहराई इतनी अधिक है कि स्थानीय भूगर्भीय स्कैनिंग से भी पूरा अंदाजा नहीं लगाया जा सका।
लगातार निगरानी से मिलेगा वास्तविक डेटा
एनएचएआई और लोक निर्माण विभाग की टीमें भूगर्भ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर क्षेत्र की लगातार ड्रोन मैपिंग, थ्री-डी स्कैनिंग और सेस्मिक मॉनिटरिंग कर रही हैं। प्रो. बिष्ट के अनुसार, कम से कम चार महीने तक लगातार निगरानी के बाद ही दरारों के व्यवहार की स्पष्ट तस्वीर सामने आ सकेगी।
निगरानी से जुड़े सभी आंकड़े टीएचडीसी (Tehri Hydro Development Corporation) को सौंपे जाएंगे, जिसके विशेषज्ञ आगे की कार्य योजना तैयार करेंगे।
धाम यात्रा पर संकट, आर्थिक व धार्मिक प्रभाव संभव
यदि यह मार्ग बाधित होता है तो बदरीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंड साहिब जैसी तीर्थ यात्राएं सीधे प्रभावित होंगी। साथ ही, गढ़वाल के कई जिलों की आर्थिक और आपातकालीन आपूर्ति व्यवस्था भी ठप हो सकती है। ऐसे में यह संकट केवल भौगोलिक नहीं, सामाजिक और धार्मिक भी है।
तोताघाटी में उभर रही यह स्थिति सिर्फ एक भूस्खलन का मामला नहीं, बल्कि गढ़वाल की जीवन रेखा के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न है। समय रहते वैज्ञानिक और तकनीकी समाधान अपनाए गए तो बड़ा संकट टल सकता है—अन्यथा यह दरारें भविष्य की बड़ी तबाही का संकेत हो सकती हैं।






