उत्तर प्रदेशलखनऊ

आईएएस पर कार्रवाई या पर्देदारी? भ्रष्टाचार की जड़ें कहीं गहरी तो नहीं?

एक अधिकारी के निलंबन से क्या पूरा भ्रष्टाचार तंत्र बेनकाब हुआ या सिर्फ दिखावटी कार्रवाई?

जन एक्सप्रेस/राज्य मुख्यालय। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अभिषेक प्रकाश को बर्खास्त कर दिया। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने एक कारोबारी से सोलर प्रोजेक्ट में 5% कमीशन मांगा। बर्खास्तगी अपने आप में एक बड़ी कार्रवाई है, लेकिन *सवाल ये उठता है कि क्या यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक कदम है या फिर केवल एक चेहरा कुर्बान कर असली तंत्र को बचाने की कोशिश?*

सालों से आरएसएस, भाजपा के विधायक, विपक्षी दल और आम जनता योगी सरकार के अधीन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे में सिर्फ एक अधिकारी पर गाज गिरना, उस व्यापक नेटवर्क को उजागर नहीं करता जो सरकारी तंत्र की जड़ों में समाया हुआ है।

एक आईएएस अधिकारी की आमदनी बनाम उनकी संपत्ति:

मासिक वेतन: लगभग ₹1.75 लाख

वार्षिक आमदनी: लगभग ₹21 लाख

30 वर्ष की सेवा में: लगभग ₹6.3 करोड़

जरूरी खर्च (परिवार, मकान, गाड़ी, शिक्षा): ~4 करोड़

संभावित बचत: 1.5 से 2 करोड़ रुपये

तो फिर ये आलीशान बंगले, फार्महाउस, विदेश यात्राएं और मॉल में निवेश कहां से आया?
क्या ये सब सिर्फ वेतन से संभव है?

पूर्व में भ्रष्टाचार में लिप्त आईएएस अधिकारियों की सूची (उत्तर प्रदेश):

1. देवीशरण उपाध्याय (2012 बैच): अलीगढ़ में 35 भूखंडों की मनमानी बहाली।

2. टी.के. शीबू: सोनभद्र के डीएम रहते हुए अनुचित प्रशासनिक कार्यों पर निलंबित।

3. सुनील कुमार वर्मा: औरैया डीएम के तौर पर वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त।

4. देवेंद्र कुमार पांडेय: बेसिक शिक्षा में घोटाले पर निलंबित।

5. अमरनाथ उपाध्याय: गौ संरक्षण बजट में हेरफेर के आरोप।

6. केदारनाथ सिंह: पर्यटन विभाग में अनियमितताओं के चलते निलंबन।

7. शारदा सिंह: भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी कोटे की अनदेखी।

8. जितेंद्र बहादुर सिंह: अनाज वितरण घोटाला।

9. कुमार प्रशांत: गेहूं खरीद में भ्रष्टाचार।

10. प्रेम प्रकाश सिंह: गोरखपुर की सफाई व्यवस्था में घोटाला।

इन मामलों में कई पर केवल निलंबन हुआ, परंतु क्या इनके खिलाफ कभी कोई न्यायिक या आर्थिक दंड लागू हुआ?

राजनीतिक संरक्षण और सरकारी चुप्पी:

कई भ्रष्ट अधिकारी आज भी राजनीतिक संरक्षण के चलते पुनः बहाल हो जाते हैं या प्रभावशाली पदों पर बने रहते हैं। सरकार यह दावा तो करती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर काम कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।

क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी आईएएस-आईपीएस अधिकारियों की संपत्ति, आय के स्रोत और व्यावसायिक गतिविधियां समय-समय पर जांची जाएं?

भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई—हकीकत या दिखावा?

अगर सच में सरकार पारदर्शिता चाहती है तो:

सभी अधिकारियों की वार्षिक संपत्ति घोषणा सार्वजनिक हो।

CBI/ED/लोकायुक्त की स्वतंत्र जांच हो।

राजनैतिक संरक्षण प्राप्त अधिकारियों पर भी समान सख्ती लागू हो।

जनता का विश्वास डगमगाने की कगार पर:

जनता अब सवाल कर रही है—क्या आईएएस का पद सिर्फ “कमाई और अघोषित संपत्ति का साधन” बनकर रह गया है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार को हर स्तर पर सत्यापन और पारदर्शिता सिद्ध करनी होगी।

जन एक्सप्रेस की अपील:

यदि आपके आसपास भी किसी अधिकारी, जनप्रतिनिधि या संस्था द्वारा भ्रष्टाचार किया जा रहा है:

1. सबसे पहले सरकारी शिकायत पोर्टल या हेल्पलाइन नंबर पर रिपोर्ट करें।

2. उसके बाद जन एक्सप्रेस को सूचना दें।

3. जन एक्सप्रेस आपकी पहचान गुप्त रखकर आपकी आवाज को समाचार का रूप देगा।

याद रखें- आपकी सतर्कता ही भ्रष्टाचार पर सबसे बड़ा वार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button