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 निजी स्कूलों के बाद अब कोचिंग माफिया का आतंक,डॉक्टर-इंजीनियर

जन एक्सप्रेस/गाजियाबाद: गाजियाबाद निजी स्कूलों की बढ़ती फ़ीस से पहले ही अभिभावक परेशान थे, लेकिन अब कोचिंग माफिया ने भी डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के नाम पर लूट मचा दी है। 10वीं और 12वीं पास करते ही छात्रों और उनके अभिभावकों को यह समझाया जाता है कि कोचिंग के बिना सफलता संभव नहीं। इसी डर और सपनों के सहारे अब लाखों रुपये की वसूली हो रही है। सुरक्षा मानकों और अग्निशमन विभाग की अनापत्ति प्रमाण के बिना अथवा खानापूर्ति करके धड़ल्ले से गली गली मोहल्लों से लेकर शहरों के प्रमुख स्थलों पर कोचिंग संस्थान खुल रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन भरे पड़े हैं । शहरों के चौक चौराहे हो या लालबत्ती हर जगह बड़े बड़े होर्डिंग और उसपर चमकते बच्चों के चेहरे छापकर कोचिंग  संस्थान आम अभिभावक को आकर्षित करने से नहीं चूक रहे हैं।
प्रमुख शहरों में फैले कोचिंग सेंटर एडमिशन के नाम पर 50,000 से लेकर 5 लाख रुपये तक की फीस वसूल रहे हैं। इसमें से अधिकांश फीस एडवांस में ली जाती है और कई बार फीस लौटाने की कोई व्यवस्था नहीं होती। कोचिंग सेंटर महंगे विज्ञापनों, बड़ी-बड़ी सफलता की कहानियों और स्कॉलरशिप के नाम पर छात्रों को आकर्षित करते हैं, मगर हकीकत यह है कि अधिकतर छात्र इस दबाव में मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं।
अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा अब एक व्यापार बन गई है। एक माता-पिता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमने पहले स्कूल की फीस में बड़ी मुश्किल से पैसे जुटाए, अब कोचिंग के लिए और कर्ज लेना पड़ रहा है। बच्चे का सपना डॉक्टर इंजीनियर  बनने का है, मगर इसकी कीमत हम अपनी ज़िंदगी की बचत से चुका रहे हैं।”
सरकार ने भले ही शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया हो, लेकिन निजी संस्थानों पर किसी तरह का नियंत्रण न होने से आम आदमी पिस रहा है। न स्कूल की फीस पर लगाम है, न कोचिंग संस्थानों की मनमानी पर कोई अंकुश।
वर्तमान में ज़रूरत इस बात की है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था को केवल सरकारी स्कूलों और कॉलेजों तक सीमित न रखे, बल्कि निजी शिक्षण संस्थानों और कोचिंग सेंटरों की फीस संरचना पर भी सख्त नियंत्रण लागू करे। वरना डॉक्टर – इंजीनियर बनने की इस दौड़ में न जाने कितने सपने कर्ज और तनाव में टूटते रहेंगे ।
 बंद हुए कोचिंग संस्थान, माँ-बाप की खून-पसीने की कमाई डकार गए कोचिंग माफिया
शिक्षा के नाम पर कारोबार करने वाले कई कोचिंग संस्थान अब बंद हो रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा झटका उन अभिभावकों और छात्रों को लग रहा है जिन्होंने अपनी खून-पसीने की कमाई इन संस्थानों में झोंक दी थी। डॉक्टर, इंजीनियर और सरकारी अफसर बनाने के सपने बेचने वाले इन कोचिंग माफियाओं ने फीस तो समय से वसूली, लेकिन जब बात पढ़ाई की आई, तो या तो संस्थान बंद हो गए या फिर ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति होती रही।
हाल ही में देशभर के कई शहरों में दर्जनों कोचिंग संस्थान अचानक बंद कर दिए गए। न तो छात्रों को समय रहते जानकारी दी गई और न ही फीस वापसी की कोई प्रक्रिया शुरू की गई। परेशान अभिभावक थानों और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन शिक्षा माफिया या तो फरार हैं या कानूनी कमज़ोरियों का लाभ उठाकर खुलेआम घूम रहे हैं। एक छात्रा की माँ ने आंसुओं के साथ बताया, “हमने बेटी को डॉक्टर बनाने का सपना देखा था। 1.5 लाख रुपये जमा कर दिए थे। अब न कोचिंग है, न पैसा वापस मिल रहा है।”
इन संस्थानों की कोई मान्यता या निगरानी तंत्र न होने की वजह से लाखों छात्रों और उनके परिवारों की मेहनत, उम्मीदें और पैसा बर्बाद हो रहा है। फिटजी और बायूज जैसे बड़े कोचिंग संस्थान बंद होने से हजारों परिवार की कमर तोड़ दिया लेकिन प्रशासनिक कार्यवाही कितना हुआ सबने देखा है। जिसके कारण कोचिंग माफिया अब स्कूलों के समानांतर कोचिंग संस्थान चला रहे हैं।
जनता के वाजिब प्रश्न लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं जानता जानना चाहती है
क्या शिक्षा का यह मॉडल केवल मुनाफे का साधन बनकर रह गया है?
क्या सरकार इन कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण रखने में विफल है?
और सबसे अहम, क्या भविष्य में ऐसे संस्थानों के लिए कोई जवाबदेही तय की जाएगी?
जब तक शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और नियंत्रण नहीं आएगा, तब तक लाखों परिवार ऐसे ही ठगे जाते रहेंगे। ज़रूरत इस बात की है कि कोचिंग संस्थानों की मान्यता, फीस ढांचा और संचालन पर सरकार सख्त कानून बनाए और उन्हें ईमानदारी से लागू करे।
अग्निशमन सहित सुरक्षा मानकों की अनदेखी करके चल रहे संस्थान
दिल्ली एनसीआर में बढ़ते कोचिंग संस्थानों की संख्या ने अभिभावकों की जेब तो ढीली कर ही दिया है लेकिन उसके बाद भी बच्चों के जीवन सुरक्षा को लेकर भी अभिभावक मानसिक रूप से चिंतित रहते हैं। दिल्ली , गाजियाबाद और नोएडा में पिछले समय घटित घटनाओं ने अभिभावकों की चिंता को और भी बढ़ा दिया है। कोचिंग माफियाओं की प्रशासनिक पहुंच और राजनीतिक रसूख के आगे प्रशासन और जिम्मेदार विभाग बौना सा साबित हो रहा है। अखबारों में मुद्दा उठाए जाने के बाद कुंभकर्णी निद्रा तोड़कर अग्निशमन सहित जिला प्रशासन कार्यवाही करता दिखता है ,लेकिन कुछ समय बाद स्थिति जस की तस बन जाती है। अग्निशमन पुलिस विभाग की जिम्मेदारी को गंभीर बनाने की जरूरत है। जिससे बच्चों का भविष्य और अभिभावक की चिंता कम हो ।

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