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बुलडोजर के साए में टूटा स्वाद का इतिहास: चाची की कचौड़ी और पहलवान की लस्सी अब बीते ज़माने की बात

काशी के लंका चौराहे पर चला प्रशासन का हथौड़ा, 35 से अधिक दुकानें ढहीं, स्थानीयों की आंखें नम — “अब सुबह का स्वाद कहां मिलेगा?

जन एक्सप्रेस, वाराणसी। काशी की आत्मा में रचे-बसे स्वाद की पहचान अब केवल यादों में ही बाकी रहेगी। लंका रविदास गेट चौराहे पर सुगम यातायात और अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत मंगलवार रात प्रशासन ने बुलडोजर चलाया, जिसमें काशी की दो सबसे लोकप्रिय दुकानों — चाची की कचौड़ी और पहलवान की लस्सी समेत कुल 35 से अधिक प्रतिष्ठान जमींदोज हो गए।

जहां हर सुबह स्वाद से शुरू होती थी, अब वहां खामोशी पसरी है

लंका रामलीला मैदान से सटी इन दुकानों पर पीढ़ियों से स्वाद का कारोबार चल रहा था। चाची की कचौड़ी, जो छात्रों, राहगीरों और पर्यटकों के बीच सुबह की पहली पसंद हुआ करती थी, अब वहां सिर्फ मलबा पड़ा है। वहीं पहलवान लस्सी, जो ‘मटके में मिठास और काशी की गर्मी में ठंडक’ का प्रतीक थी, अब इतिहास बन चुकी है।

रात भर चला अभियान, भारी पुलिस बल की तैनाती

कार्यवाही देर रात 10:30 बजे शुरू हुई और लोगों की भीड़ देखते ही देखते इकट्ठा हो गई। मौके पर लंका पुलिस, पीएसी और प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे। कुछ व्यापारियों ने मौन विरोध जताया, कुछ की आंखें छलक आईं।

भावुक हुए स्थानीय लोग, यादों से जुड़ी दुकानों का अंत देख दुखी

“अब सुबह कहां खाएंगे गरमा गरम कचौड़ी?” — यह सवाल मंगलवार रात से वाराणसी के सोशल मीडिया से लेकर गलियों तक गूंजता रहा। बुजुर्ग से लेकर छात्र तक, हर वर्ग का एक ही सुर था — यह सिर्फ दुकानें नहीं थीं, काशी की ज़ुबान थीं।

प्रशासन की दलील — सड़क चौड़ीकरण जरूरी, पुनर्वास की बात भी जारी

प्रशासन का कहना है कि यह कार्यवाही यातायात जाम और अवैध कब्जों को हटाने के तहत की गई, और प्रभावित दुकानदारों के पुनर्वास पर विचार चल रहा है। मगर फिलहाल, लंका चौराहे पर स्वाद की विरासत के उजड़ने का सन्नाटा पसरा है।

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