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एक अस्थायी प्रावधान संविधान का हिस्सा कैसे हो सकता है?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधायी प्रारूपण पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि विधायी प्रारूपण विज्ञान और कला नहीं है बल्कि कौशल है जिसको आत्मा के साथ जोड़कर लागू करना है। शाह ने कहा कि इसके कोई स्थायी नियम नहीं होते हैं, आपको वो नियम पढ़ाए जाएंगे लेकिन उन सभी नियम से ऊपर संविधान की आत्मा को समझकर उसको जमीन पर उतारना आपका काम है। उन्होंने कहा कि विधायी का मसौदा तैयार करना कोई विज्ञान या कला नहीं है, यह एक कौशल है जिसे भावना के साथ लागू किया जाना चाहिए। कानून स्पष्ट होना चाहिए और कोई अस्पष्ट क्षेत्र नहीं होना चाहिए।
अमित शाह ने कहा कि बहुत समय पहले ये प्रशिक्षण चलता था लेकिन किसी कारण ये बंद हो गया था। उन्होंनो कहा कि विधायी प्रारूपण हमारे लाकतंत्र का इतना महत्वपूर्ण अंग है कि इसके बारे में दुर्लक्ष्य न केवल कानूनों को निर्बल करता है बल्कि पूरे लोकतांत्रिक व्यवस्था को निर्बल करता है। उन्होंने कहा कि देश को अनुच्छेद 370 की आवश्यकता नहीं थी। एक अस्थायी प्रावधान संविधान का हिस्सा कैसे हो सकता है? संवैधानिक और संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस) द्वारा लोकतंत्र के लिए संसदीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (प्राइड) के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

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