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विश्व इतिहास का एक ऐसा नेता जिसने अपने ‘अटल’ विचार से अमेरिका के सामने हासिल किया परमाणु शक्ति

जन एक्सप्रेस/रोशन मिश्रा । भारतीय राजनीति में भी एक ऐसा अमर नेता हुआ जिसका यह विचार था, ” सरकारें आयेंगी, जायेंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए।” इस तरह से खुलकर राजनीतिक दलों को देशभक्ति का सन्देश देने वाले राजनेता का नाम था पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी।

वर्तमान राजनीति में, आये दिन जहां बड़े-बड़े नेताओं के ज़बान फिसलते रहते हैं, धक्का-मुक्की का आरोप-प्रत्यारोप सुनने को मिलता रहता है; उसी राजनीति में कभी एक नेता ऐसा भी हुआ जिसने अपनी ज़बान और शब्दों की ताक़त से विपक्षी दलों के दिलों में भी अपनी ख़ास जगह बना ली थी। पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीतिक इतिहास में, दक्षिणपंथी संगठन के नेताओं की कतार में अपनी अलग पहचान स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं।

भारतीय राजनीति में ‘अजातशत्रु’ कहे जाते थे पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी। एक ऐसा नेता जिसकी हनक सिर्फ़ बीजेपी में ही नहीं; बल्कि विपक्षी दलों में भी देखी जाती थी। एक ऐसा नेता जिसने आज़ाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव लड़ता है और बाद में अपनी पार्टी बीजेपी की तरफ़ से पहला प्रधानमन्त्री बनने का सौभाग्य प्राप्त करता है। पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी जब सदन में खड़ा होकर बोलते थे तो वहां सभी सदस्य उनके वक्तव्य को ऐसे सुनते मानो कोई शिक्षक पढ़ा रहा हो। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924, को भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री भारतरत्न पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी जन्म हुआ था।

हालांकि, पण्डित अटल बिहारी के पिता मूल रूप से आगरा ज़िले के बटेश्वर के रहने वाले थे। उनके पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी वहीं ग्वालियर रियासत में अध्यापक के रूप में नियुक्त थे। उनके पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे अध्यापन कार्य के साथ-साथ हिन्दी एवं ब्रज भाषा के अच्छे कवि भी थे। चूंकि पिता शिक्षक और कवि थे तो ज़ाहिर सी बात है कि अटल बिहारी के बाल मन में शिक्षा और कविताओं की तरफ़ रूझान पैदा होना स्वाभाविक था।

उन्होंने ग्वालियर के नामी विक्टोरिया कॉलेज से बीए की शिक्षा प्राप्त की, जिसे वर्तमान में लक्ष्मी बाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी पढ़ाई-लिखाई के दिनों में ही वाद-विवाद और निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे। इसके अलावा छात्र जीवन में ही उन्होंने आरएसएस ज्वाइन कर लिया था। आरएसएस के विचारों का प्रभाव अटल जी के छात्र जीवन में ही घुलना शुरू हो गया था। इसके बाद एम ए की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने कानपुर की ओर रुख किया। उन्होंने वहीं के डीएवी कॉलेज से एम ए ( राजनीति शास्त्र ) की पढ़ाई फर्स्ट डिवीजन से उत्तीर्ण की।

अटल जी का परिवार शिक्षा को लेकर काफ़ी उत्साहित और जागरूक था। इसका प्रमाण एक घटना से जोड़कर देखा जा सकता है। एक बार की बात है। अटल बिहारी वाजपेयी ने (एलएलबी) उस ज़माने में क़ानून की पढ़ाई करने का ज़िक्र अपने पिताजी के सामने किया। वे वकालत की पढ़ाई करना चाहते थे। ऐसा कहा जाता है कि तब तक उनके पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षण कार्यों से मुक्त हो चुके थे। उन्होंने भी अपने पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही वकालत की पढ़ाई करने के लिए उनके साथ ही दाखिला ले लिया। लेकिन, आरएसएस की दृष्टि और विचारधाराओं से ओतप्रोत होकर उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया। उसके वे पूरी तल्लीनता के साथ आरएसएस से ऐसे जुड़े कि फ़िर कभी उससे दूर न हो सके।

अगर बेबाक होकर कहा जाये तो पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी अलौकिक प्रतिभा के धनी इंसान थे। यानि की मल्टी टैलेंटेड पर्सनैलिटी। वे उच्च शिक्षित होने के साथ-साथ दूरदर्शी कवि, ओजस्वी वक्ता, लेखक, लोकप्रिय नेता और पत्रकार भी रहे। अगर वे एक-दो साल और रूककर संघ की सेवा में लगे होते तो शायद वे एक बेहतरीन वकील भी होते। संघ में ही अटल जी को पण्डित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के सान्निध्य में रहकर राजनीतिक गुणा-भाग सीखने को मिला। उन्होंने पाञ्चजन्य, वीर अर्जुन, राष्ट्र धर्म और दैनिक स्वदेश जैसे पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़कर सम्पादन का कार्य भी किया।

भारतीय जनसंघ नामक एक राजनीतिक दल के अति विशिष्ट सदस्यों में एक नाम पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी का भी आता है। वे भारतीय जनसंघ के (1968-1973) तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। अटल बिहारी वाजपेयी, राजनीतिक रूप से एक महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी व्यक्ति थे। स्वतन्त्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव (1952) में उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें इस चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा। फ़िर भी, उनकी चुनावी पारी का आगाज़ यहीं से शुरू हो चुका था। सन् 1957 के लोकसभा चुनाव में; यूपी के गोण्डा ज़िले की बलराम लोकसभा सीट पर उन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर पहली बार संसद में पांव रखा। पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी का बतौर कांग्रेसी नेता के रूप में राजनीतिक रूतबे का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1957 से लेकर 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना होने तक; वे बीस वर्षों तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में काम करते रहे।

1975 में, इमरजेंसी लगाने को लेकर तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी को लेकर ग़ैर कांग्रेसी दलों में असंतोष व्याप्त था। इन्दिरा गांधी को सत्ता से अपदस्थ करने के लिए कई सारे दल एक छत के नीचे आकर योजनाएं बना रहे थे। तब कांग्रेस के विरोध में सामाजिक न्याय और चिन्तन के नाम पर ‘समाजवाद’ जैसे शब्दों का सहारा लिया जा रहा था। 1977 में, लोकसभा का आम चुनाव होता है। इस चुनाव ने तारीख़ बदल दी। आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा होता है कि देश की सत्ता से कांग्रेस को हटाकर किसी ग़ैर कांग्रेसी दलों/गठबन्धन के हाथों में सत्ता की बागडोर आ जाती है। जनता पार्टी की सरकार बनती है और मोरारजी देसाई पहले ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री बनते हैं। मोरारजी देसाई की सरकार में पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी को अहम् ओहदा मिलता है। वे उस सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारतीय छवि को मजबूत किया।

जनता पार्टी को टूटना ही था क्योंकि इस पार्टी में कांग्रेस के विरोध में अलग-अलग गुटों के नेता एकजुट हुए थे। यहां विचारधाराओं में भिन्नता थी। इसी भिन्नता ने जनता पार्टी को जल्द ही अपना फ़ैसला सुना दिया। सन् 1980 में, पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी का जुड़ाव ‘जनता पार्टी’ ख़त्म हो जाता है। वे उस गुट से बाहर निकल जाते हैं और ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना के प्रमुख सूत्रधार के रूप में इनका नाम सामने आता है। 6 अप्रैल 1980 में, बीजेपी की स्थापना होती है और उसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व भी पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी के कंधों पर आता है। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। इसके बाद 1996 में, उनके राजनीतिक करियर का सबसे ख़ूबसूरत पल आता है जब उन्हें प्रधानमन्त्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

हालांकि, वे अधिक दिनों तक इस पद को सम्भाल नहीं पाये। 1998 में, वे एक बार फ़िर प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेते हैं। तब एनडीए ने क़रीब 13 दलों को एकजुट कर पांच साल सफलतापूर्वक सरकार चलाया। पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी की इस सरकार ने कुछ बेहद ही महत्त्वपूर्ण काम किए। वे एक अनुभवी, परिपक्व और शिक्षित राजनेता थे, इसलिए बतौर प्रधानमन्त्री उन्होंने अपनी तरफ़ से ‘प्रगति’ को अव्वल बनाने की भरपूर कोशिशें की। जिसका फ़ायदा देश को भी मिला।

बतौर प्रधानमन्त्री पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल पर एक नज़र

जब भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के रूप में जाना गया

वैश्विक राजनीति में परमाणु शक्ति से लैस देशों को ख़ास महत्त्व मिलता आया है। इस मामले में अमेरिका और रूस पहले से ही आपसी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे रहे थे। इधर, अमेरिका भी नहीं चाहता था कि कोई और मुल्क परमाणु शक्ति से लैस हो। लेकिन, पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी की कूटनीति से अमेरिका को भी मुंह की खानी पड़ी। अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। बताया जाता है कि यहां पांच बार भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट किया गया था। जिसके बाद ऐसी कामयाबी हासिल हुई कि हमें परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के रूप में घोषित कर दिया गया। अ

टल सरकार की इस उपलब्धि ने वैश्विक राजनीतिक पटल पर भारत की शक्ति से दुनिया को एकबार फ़िर परिचय कराया। सबसे ख़ास बात यह है कि तकनीकी सम्पन्न अमेरिका सहित कई अन्य पश्चिमी देशों के जासूसी उपग्रहों की क्षमताओं को चकनाचूर करते हुए हमने इस परीक्षण को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया था। यहां पर अटल सरकार ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।

स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना

सन् 2001 में, अटल सरकार द्वारा स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को शुरू की गयी थी। भारत के भीतर चारों कोनों को सड़क राजमार्ग से जोड़ने हेतु स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का आविष्कार किया गया था। इसके अन्तर्गत देश सबसे बड़े महानगरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को राजमार्गों से कनेक्ट किया गया। मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा जाता है कि पण्डित अटल सरकार ने भारत में जितनी सड़कों का निर्माण किया गया उतना शायद शेरशाह सूरी के शासनकाल में ही हुआ था।

इसके अलावा अटल सरकार ने कुछ और भी अतीव महत्त्वपूर्ण कार्य किए। इनकी सरकार ने दशकों से चले आ रहे कावेरी जल विवाद का निपटारा किया। ग्रामीण रोजगार सृजन और विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए बीमा योजना की शुरुआत भी इसी सरकार ने की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अर्बन सीलिंग एक्ट को ख़त्म किया ताकि आवास निर्माण को प्रोत्साहन दिया जा सके।

उस समय तकनीकी विकास विकसित देशों को भरपूर फ़ायदा पहुंचा रहा था। अटल जी ने तकनीकी और कम्प्यूटर की अहमियत को अच्छी तरह से भांप लिया था। यही कारण है कि इस सरकार ने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल और विद्युतीकरण योजना को गति देने के लिए केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग का भी गठन किया। इसके अलावा भी कई सारे महत्त्वपूर्ण कार्य ऐसे थे जिसने पण्डित अटल बिहारी सरकार ने सफलतापूर्वक किए।‌

पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी ने संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी निजी ज़िन्दगी की ख़ुशियों का भी ख़्याल नहीं रखा। उन्होंने आजीवन संघ की सेवा करने का निर्णय कर लिया था, शायद यही कारण है कि वे आजीवन अविवाहित रहे। ‘मेरी इक्यावन कविताएं ‘ अटल बिहारी वाजपेयी के प्रसिद्ध काव्यसंग्रह के रूप में जाना जाता है। उनकी पहली कविता ‘ताजमहल’ थी, जिसने पाठकों के हृदय पर गहरा प्रभाव छोड़ा था।

पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी को 2009 में दिल का दौरा पड़ा। यह ऐसा मनहूस दौरा था जिसने पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ी शक्ति उनकी आवाज़ को ही चोटिल कर दिया। वे शारीरिक रूप से इतना बेबस हो गये थे कि उन्हें बोलने में अक्षमता होने लगी। इसके बाद वे ऐसा बीमार पड़े कि उन्हें राजनीति से सदा के लिए दूर रहना पड़ा। सन् 2018 में उन्हें किडनी सहित अन्य दूसरे शारिरिक तकलीफों के कारण एम्स में भर्ती कराया गया। 16 अगस्त 2018 को, उसी एम्स में, शाम 5 बजकर 5 मिनट पर भारतीय राजनीति के अद्भुत सितारे का अन्त हो गया।

पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन में एक से बढ़कर एक उपलब्धियों को हासिल किया। वैसे, उनके जैसा बड़ा व्यक्तित्व किसी उपलब्धि का मोहताज नहीं था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, सन् 1992 में उन्हें पद्म विभूषण मिला। सन् 1993 में, कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की मानक उपाधि प्रदान की। फ़िर 1994 में, उन्हें लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया। उसी साल उन्होंने श्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार भी अपने नाम किया। 1994 में ही, उन्हें भारतरत्न पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त पुरस्कार से नवाजा गया। साल 2015 में, फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड जो कि बांग्लादेश सरकार द्वारा पण्डित जी को प्रदान किया गया। साल 2015 में ही देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ भारत रत्न ‘ से अटल जी को सम्मानित किया गया।

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