भारतीय संस्कृति को जिंदा रखे हैं रोमा लाेग : श्याम परांदे
मेरठ । अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महामंत्री श्याम परांदे ने कहा कि भारत से बाहर गए सभी लोग प्रवासी भारतीय है, चाहे वे एक साल पहले गए हों, एक दशक पहले गए हों, एक शताब्दी पूर्व गए हों या एक सहस्राब्दी पूर्व गए हो। लगभग 1500 वर्ष पूर्व भारत से बाहर गए और यूरोप के 32 देशों में फैले ढाई करोड़ रोमा लोग स्वयं को भारतीय ही मानते हैं और भारतीय संस्कृति को जिंदा रखे हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की मेरठ इकाई द्वारा बुधवार को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अटल ऑडिटोरियम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महामंत्री श्याम परांदे ने कहा के जब से जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास आई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जनांदोलन के रुप में चलाने की अपेक्षा की है। देश के विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं। 21 और 22 मार्च को नागपुर में कार्यक्रम किया गया तो पूरा नागपुर इस ढंग से सजाया गया था कि सारे विदेशी मेहमान हतप्रभ रह गए। इससे पूर्व भी विभिन्न देशों में जी-20 की अध्यक्षता रही है, लेकिन कहीं भी उतने भव्य कार्यक्रम और उत्साह देखने को नहीं मिले।
उन्होंने कहा कि प्रवासी भारतीयों के द्वारा विदेशों में अपनी संस्कृति को बचाकर रखते हुए वहां के समाज को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने संस्कृत के संदर्भ देकर कहा कि ये मेरा है, ये तेरा है। ये चिंतन छोटे दिल दिमाग वाले करते हैं, जबकि उदार चरित्र वाले याने बड़े दिल वाले समस्त पृथ्वी को एक कुटुंब या परिवार ही मानते हैं। ऐसी विचारधारा की स्थापना होने पर विश्व में होने वाले समस्त संघर्ष खत्म हो जाएंगे और वास्तविक विश्वशांति की स्थापना हो सकेगी। ये पृथ्वी एक है।आकाश भी एक ही है। सभी में एक ही परमात्मा का अंश है। अतः वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा ही स्थापित किया जाना आवश्यक है।
श्याम परांदे ने कहा कि विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के दिलों में एक छोटा भारत रहता है। जब उनसे पूछते हैं उनको क्या चाहिए तो उनका उत्तर होता है कि उन्हें कुछ नही चाहिए। केवल गंगा, काशी और अन्य तीर्थों की यात्रा की सुविधा और अपने पूर्वजों के मूल स्थान की जानकारी ही अपेक्षित रहती है। वे विभिन्न देशों में होली, दिवाली और रामलीलाएं मनाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर उन देशों में पूरी सेवा भी करते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने तथा संचालन डॉ. सोनम शर्मा ने किया।
कार्यक्रम संयोजक अनिल गुप्ता ने कहा कि भारतीय चिंतन में व्यक्ति नहीं, बल्कि परिवार ही सबसे छोटी इकाई होता है। यहां पिंड से ब्रह्मांड तक एक सूत्र में रहने की अवधारणा की गई है। प्रो. रूप नारायण ने कहा कि समस्त पृथ्वी एक परिवार ही है। प्रो. वाई विमला ने कहा कि भारतीय होने के कारण विदेशों में विशेषकर हंगरी में उन्हें विशेष सम्मान दिया गया था।