देश

उद्धव ठाकरे के हाथ से कैसे फिसली पिता बालासाहेब की विरासत

महाराष्ट्र में काफी सियासी उथल-पुथल देखने को मिली। क्योंकि उद्धव ठाकरे के कभी बेहद करीबी माने जाने वाले एकनाथ शिंदे ने 39 विधायकों के साथ बगावत शुरूकर दी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी उद्धव गुट की बजाय एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना करार दे दिया। इस तरह से उद्धव ठाकरे गुट को शिवसेना यूबीटी नाम मिला। महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के परिणामस्वरूप गठित मूल शिवसेना के दो अलग-अलग गुटों में बंट गई। जिस तरह से उद्धव ने सत्ता से हाथ धोया, ठीक उसी तरह वह अपने पिता की विरासत को भी खो बैठे।

हालांकि उद्धव ठाकरे झुके नहीं और टूटे नहीं। उन्होंने बिखरी चीजों को समझा, समेटा और संभालने का काम किया। चुनाव प्रचार के दौरान उद्धव तय रणनीति पर काम करते रहे और दूसरी तरफ उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने मोर्चा संभाला। हाल ही के दिनों में उद्धव ठाकरे ने अपनी इमेज एक कट्टर नहीं बल्कि सॉफ्ट हिंदुत्ववादी के तौर पर पेश की और जनता को उनका यह बदलाव काफी अच्छा लगा।

शिवसेना का गठन

बता दें कि 58 साल पहले साल 1966 में शिवसेना की स्थापना की गई थी। महाराष्ट्र में इस पार्टी की अपनी धमक देखने को मिलती है। यह दल मराठा लोगों के अधिकारों की लड़ाई के लिए शुरू किया गया था, जोकि बाद में सियासी दल बन गया। इसकी स्थापना बाला साहेब ठाकरे ने की थी। वहीं बाला साहेब ठाकरे द्वारा बनाई गई पार्टी का नाम उनके पिता ने दिया। शिवसेना का अर्थ शिवाजी महाराज की सेना से है। वहीं बाल ठाकरे की विचारधारा कट्टर हिंदुत्व वाली रही। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे राज्य के सीएम पद पर भी रहे।

वहीं 90 के दशक में मंदिर आंदोलन और सांप्रदायिक आंदोलन की वजह से राज्य में धुव्रीकरण चरम पर था। जिसका सीधा फायदा शिवसेना गठबंधन को हुआ। वहीं साल 1995 में राज्य में पहली बार शिवसेना ने गठबंधन में सरकार बनाई। साल 2003 में उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। वहीं साल 2005 में शिवसेना को बड़ा झटका लगा और पार्टी के दिग्गज नेता नारायण राणे ने पार्टी छोड़ दी। बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उद्धव ठाकरे ने पार्टी को संभाला।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button