अयोध्या

अयोध्या : जनम लियो रघुरईया, अवध मा बाजे बधईया

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– दशरथ महल में आयोजित कथा में श्री राम लला का हुआ जन्म

– दशरथ महल महंत बिंदुगद्याचार्य देवेन्द्र प्रसादाचार्य की अध्यक्षता में चल रही राम कथा

अयोध्या। दशरथ महल बड़ा स्थान में श्री राम जन्मोत्सव के पुनीत अवसर पर महन्त बिंदुगद्याचार्य देवेन्द्र प्रसादाचार्य की अध्यक्षता एवं मंगल भवन पीठाधीश्वर महंत कृपालू राम भूषण दास के व्यवस्थापकत्व में हो रही श्री राम कथा की सुधावृष्टि में कथा श्रोता भक्त कृतकृत्य हो रहे हैं।

भक्तों को कथामृत का रसपान कराते हुए ख्यातिलब्ध कथा व्यास श्री नरिहरी दास जी महाराज ने कहा रघुपति की कथा ही गंगा है। जिनमें सारे आकार निकलते है वे साकार है जो गुण रहित है वही सगुण हो जाता है। भगवान के अवतार का एक कारण नहीं है अनेक हैं। जब जब धर्म की हानि होती है, असुरों की वृद्धि होती है, तब तब भगवान मनुष्य का अवतार धारण करते है। ये प्रभु के अवतरण का एक कारण है। दूसरा कारण जय और विजय को सनकादिक ऋषियों का श्राप है। भोले नाथ जी ने माता पार्वती से कहा। माता पार्वती ने कहा और कोई कारण , भोले नाथ ने कहा हां और भी कारण है। जालंधर असुर से भोले नाथ का घोर संग्राम हुआ। जालंधर की पत्नी सती स्वरूप थी इस लिए जालंधर मर नही रहा था। उसकी सती पत्नी का सतीत्व भंग करने के लिए प्रभु को अवतार धारण करना पड़ा।

माता पार्वती ने कहा प्रभु और कोई प्रसंग भगवान के अवतार का सुनाइए। भोले नाथ ने कहा एक बार ऋषि नारद जी ने भगवान को श्राप दिया जिससे भगवान को मनुष्य का अवतार धारण करना पड़ा। माता पार्वती जी चकित हो गई। नारद जी तो भगवान के प्रिय भक्त है , मेरे गुरु देव जी ने श्राप क्यों दिया?

नारद जी को तपस्या से विमुख करने के लिए इंद्रदेव ने अप्सराओं को भेजा वे भी कुछ नही कर सकी। प्रणाम करके चली गई। कामदेव जी भी नारद जी की तपस्या भंग नहीं कर सके। नारद जी के चरणों में प्रणाम करके चले गए। नारद जी को अहंकार हो गया। भोले नाथ के मना करने के उपरांत भी विष्णु भगवान से समस्त वृतांत कह सुनाया। प्रभु ने माया रची। विश्व मोहिनी का विवाह रचा। नारद जी ने प्रभु को श्राप दिया। जिस कारण भगवान को मनुष्य का अवतार धारण करना पड़ा। भोले नाथ से माता पार्वती ने पूछा और कोई कारण है क्या ? भोले नाथ ने कहा हां है मनु और सतरूपा ने घोर तप किया। प्रभु प्रकट हुए बोले राजन वर मांगो। मनु सतरूपा ने भगवान से उन्हीं के समान पुत्र मांगा। भगवान ने कहा अपने समान पुत्र कहा ढुढू? हे राजन मैं अंशों सहित चारो भाई जब आप अयोध्या के महाराज दशरथ के रूप में राज्य करेगे तब मैं आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।

एक कारण जन्म का रावण का अत्याचार भी था। पृथ्वी रावण के अत्याचार से त्राहि त्राहि करने लगी। सभी देवता एकसाथ भगवान की विनती करने लगे। भोले नाथ ने कहा भगवान तो सर्वत्र है किंतु प्रेम से ही प्रभु प्रकट होते है। देवताओं की विनती से द्रवित होकर प्रभु प्रकट हुए और देवताओं को आश्वस्त किया। हे देवताओं निर्भय हो जाओ मैं अयोध्या में महाराज दशरथ जी के यहां अपने अंशों सहित चारो भाई अवतार धारण करुंगा।

अयोध्या नरेश महाराज दशरथ पुत्र की प्राप्ति हेतु चिंतित हुए महाराज गुरु वशिष्ठ जी की शरण में गए। वशिष्ठ जी ने कहा राजन धैर्य धारण करो, चार पुत्र होंगे। मख भूमि मखौड़ा में श्रृंगी ऋषि द्वारा यज्ञ कराया गया। यज्ञ में अग्नि देव प्रकट होकर हवि देते है, तीनों रानियां धारण कर गर्भ व होती है। नौमी तिथि को दिन में बारह बजे भगवान का प्राकट्य हुआ। पुष्प वर्षा होने लगी। भगवान की जय जय कार होने लगी। कथा व्यास जी तथा भक्त बधाई गीत पर झूम कर नृत्य करने लगे।

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