उत्तर प्रदेश

लोकसभा चुनाव 2024: जुबां पर छाए हैं रोजगार और शिक्षा के मुद्दे

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बरेली। धार्मिक मुद्दों पर मुखर रहने वाले मुसलमानों ने इस चुनाव में चुप्पी साध ली है। लगातार हमलों के बावजूद उनकी यह चुप्पी टूट नहीं रही है। सोशल मीडिया से लेकर मुस्लिम बहुल इलाकों तक यह खामोशी कायम है। धार्मिक मुद्दों पर किए जा रहे हमलों पर जस के तस अंदाज में कोई प्रतिक्रिया देने के बजाय वे रोजगार और शिक्षा की बात कर रहे हैं।
पुराना शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों की संकरी गलियों में आम मुसलमान भी धार्मिक मुद्दों पर बात करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इसके उलट वे कहते हैं कि उनके लिए अब रोजगार ही सबसे बड़ा मुद्दा रह गया है। दरअसल, एक जमाने में यहां हर दूसरे घर में जरी का काम होता था। मोहल्ला चक महमूद में राज्य पुरस्कार से सम्मानित जरी कारीगर एहतेशाम कहते हैं कि रोजगार की हालत इतनी बदतर हो गई है कि 30 प्रतिशत से ज्यादा लोग जरी का काम छोड़ दूसरे काम करने लगे हैं।

एहतेशाम कहते हैं कि हजारों लोगों को जीवनयापन का जरिया देने वाले इस रोजगार पर जीएसटी ने सबसे ज्यादा चोट की है। बड़े कारोबारी तो जैसे-तैसे अब भी टिके हैं, लेकिन छोटे कारोबारियों की कमर टूट चुकी है। उन्होंने बताया कि सरकार की ओडीओपी योजना से राहत मिलने की उम्मीद थी लेकिन इसका पूरा लाभ जरी कारीगरों को नहीं मिला। खुद राज्य सरकार से सम्मानित होने के बावजूद उन्होंने जिला उद्योग केंद्र से लोन के लिए आवेदन किया लेकिन उन्हें लोन नहीं दिया गया।

रोजगार नहीं होगा तो कैसे मिलेगी शिक्षा
पुराना शहर के रोहली टोला में रहने वाले स्कूल संचालक मलिक शहजाद बताते हैं कि आज की परिस्थिति यह है कि रोजगार है तो शिक्षा है। क्योंकि अगर रोजगार नहीं तो मुसलमान अपने बच्चों को किस तरह बेहतर शिक्षा दे पाएगा। गरीब घरों से अशिक्षा का अंधेरा दूर हो सके इसलिए उन्होंने 24 साल पहले स्कूल खोला, लेकिन एक अकेला तो चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

बेचैनी जरूर लेकिन मुद्दों पर कायम
पूरे पांच साल देश की सियासत ऐसे मुद्दों के आसपास घूमती रही जिससे आम मुसलमान बेचैन रहा। चाहे ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हो या मदरसों की जांच। इस पर रोहली टोला के शाजेब खान कहते हैं कि इस सब से बेचैनी जरूर है, लेकिन आम मुसलमान अब असल मुद्दों पर कायम हो गया है। सरकार जो भी बने मगर शिक्षा और रोजगार उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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