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संसद को किसी तरह का कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता

सुप्रीम कोर्ट में अपना पहला हलफनामा पेश किया और इसके समर्थन में कई दलीलें पेश कीं हैं। अपने हलफनामे में सरकार ने तर्क दिया कि विभिन्न कानून राष्ट्रीय एकता को बाधित करते हैं और यूसीसी व्यक्तिगत कानून को विभाजित करता है। पर्सनल लॉ में एकरूपता की मांग करने वाली कई याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दायर किया गया था। रिपोर्टों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष छह जनहित याचिकाएं दायर की गईं हैं। जिनमें चार अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा, एक याचिका लुबना कुरैशी द्वारा, और दूसरी याचिका डोरिस मार्टिन द्वारा कानून को लागू करने की मांग के लिए दायर की गई थी। जनहित याचिकाओं में केंद्र सरकार से तलाक, गोद लेने, संरक्षकता, उत्तराधिकार, विरासत, रखरखाव, शादी की उम्र और गुजारा भत्ता के लिए धर्म और लिंग-तटस्थ समान कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की संभावना पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया था। इसने समान नागरिक संहिता से संबंधित कई याचिकाओं पर केंद्र से विस्तृत जवाब देने का भी अनुरोध किया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यूसीसी को हमेशा से धार्मिक तुष्टिकरण के तमाशे के रूप में देखा गया है। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 18 अक्टूबर को कहा कि कोर्ट इस बारे में संसद को कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकता। संसद के पास किसी मसले पर कानून लाने का संप्रभु अधिकार है। किसी बाहरी अथॉरिटी उसे कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती।केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि यह जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए नीति का विषय है और इस संबंध में न्यायालय द्वारा कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। यह विधायिका के लिए कानून का एक टुकड़ा बनाने या न बनाने के लिए है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 44 का लक्ष्य ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के उद्देश्य को बढ़ाना है जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है।

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