फर्जी मुठभेड़ पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी: ‘सादे कपड़ों में फायरिंग पुलिस ड्यूटी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा: न्याय में बाधा डालने वाला कोई भी काम 'ड्यूटी' नहीं कहा जा सकता

जन एक्सप्रेस/नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी एनकाउंटर से जुड़ी एक अहम सुनवाई में साफ किया है कि सादे कपड़ों में किसी नागरिक वाहन को घेरकर सरकारी हथियार से गोली चलाना पुलिस की ‘आधिकारिक ड्यूटी’ नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि साक्ष्य को नष्ट करना भी ड्यूटी का हिस्सा नहीं माना जा सकता और ऐसे मामलों में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।
यह मामला 2015 में पंजाब के अमृतसर जिले के वेरका इलाके में हुए एक कथित फर्जी मुठभेड़ से जुड़ा है, जिसमें नौ पुलिसकर्मियों पर आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि पुलिस की ड्यूटी की आड़ में किसी की हत्या या साक्ष्य नष्ट करना कानून के खिलाफ है।
हाईकोर्ट का फैसला बरकरार, आरोपी होंगे समन
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया है जिसमें आरोपियों को समन भेजने और उनके खिलाफ आरोप तय करने को उचित बताया गया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए उस डीसीपी पर भी मुकदमा चलाने की मंजूरी दी, जिस पर साक्ष्य मिटाने का आरोप है।
कोर्ट की सख्ती: ‘ऑफिशियल ड्यूटी की आड़ में अन्याय स्वीकार्य नहीं’
फैसले में अदालत ने यह भी कहा कि “ऑफिशियल ड्यूटी का लबादा” उन कार्यों तक सीमित रहना चाहिए जो संविधान व कानून के दायरे में हों। अगर किसी कृत्य का उद्देश्य न्याय में बाधा डालना हो या कानून का उल्लंघन करना हो, तो वह ड्यूटी नहीं बल्कि अपराध होगा।






