तुलसी तीर्थ राजापुर में राम बोला का बहुत ही हर्ष उत्सव के साथ मनाया जा रहा है जन्म उत्सव
जन एक्सप्रेस/हेमनारायण द्विवेदी
चित्रकूट। गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर उनकी जन्मस्थली राजापुर राममय है। वृंदावन से संत रामदास महाराज की ओर से 14 अगस्त से नवान्ह पारायण का पाठ निरंतर चल रहा है। बुधवार को तुलसी जन्मोत्सव मनाया जाएगा। देश के कोने-कोने से रामभक्त तुलसीदास की जन्मस्थली में पहुंच रहे हैं। मानस मंदिर में तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस के दर्शन कर धन्य हो रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य ऊधौ के वंशज और मानस मंदिर के महंत रामाश्रय त्रिपाठी बताते हैं कि हस्तलिखित रामचरित मानस के दर्शन मात्र से लोगों को कष्ट कट जाते हैं।
पंद्रह सौ चौवन विषय कालिंद्री के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी धरो शरीर।।
राजापुर धाम के राम बोला में 76 वर्ष की उम्र में श्रीरामचरितमानस का लेखन करना प्रारंभ किया। 2 साल 7 माह 26 दिन में पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का लेखन पूर्ण किया था।
श्रीरामचरितमानस का लेखन पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम जन्मभूमि पवित्र धाम अयोध्या से प्रारंभ किया और प्रयागराज चित्रकूट घूमते हुए बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में इन्होंने रामचरितमानस का लेखन पूर्ण किया।।
चित्रकूट से ही नहीं दूरदराज से भी आए हुए लोग बाबा तुलसी का जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं। जिसमें दूर दराज के लाखों नर नारी साधु संत दर्शनार्थी तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जन्मस्थली राजापुर में सुबह 7:00 बजे से दिव्य पूजन अर्चन करने के बाद 12:00 बजे तक हजारों साधु संतों के द्वारा नव परायण पाठ किया जाता है।
हस्तलिखित रामचरित मानस दर्शन के लिए दूर दूर आते हैं श्रद्धालु
गोस्वामी तुलसीदास 16वीं सदी जनपद चित्रकूट के राजापुर में पैदा हुए थे। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अमर काव्य में से एक है। इसके अलावा उन्होंने गीतावली, कवितावली, विनय पत्रिका ,जानकी मंगल और बरवै रामायण सहित 12 ग्रन्थों की रचना की थी। उनकी हस्तलिखित रामचरितमानस आज भी मानस मंदिर राजापुर में रखी है। जिसके दर्शन को सुबह से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मंदिर के पुजारी रामाश्रय दास महाराज ने बताया कि सुबह से ही विभिन्न शहरों के लोग तुलसीदास के पूजन में आ रहे हैं।
अयोध्या कांड की पांडुलिपियां मात्र है सुरक्षित
महंत के मुताबिक तुलसीदास की रामचरित मानस को लेकर कहानी प्रचलित है कि एक पुजारी धन कमाने के लालच में पांडुलिपियां लेकर भाग रहा था। काला-कांकर घाट पर वह गंगा नदी नाव से पार कर रहा था। लोग उसका पीछा कर रहे थे। उसने डर के कारण पांडुलिपियां नदी में फेंक दी थीं। काला-कांकर के राजा हनुमंत ङ्क्षसह ने पांडुलिपियां नदी से निकलवाई थीं। भीगने की वजह से सभी कांड खराब हो गए थे। सिर्फ अयोध्याकांड सुरक्षित बचा था। वर्ष 1948 में पुरातत्व विभाग ने इसे विशेष केमिकल से संरक्षित किया। वर्ष 1980 में कानपुर के राम भक्तों ने लेमिनेशन करवाया। वर्ष 2004 में भारत सरकार ने इस जापानी केमिकल लगवाया था।