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हर 12 वर्ष में क्यों लगता है कुम्भ ? क्या है महा कुम्भ की मान्यताएं ?

जन एक्सप्रेस/ मुस्कान चौबे/ लखनऊ: प्रयागराज में 12 साल के लंबे इंतजार के बाद महा कुंभ का शुभ आरंभ हो चुका है। यह महाकुम्भ 12 पूर्ण कुंभ यानी 144 साल के बाद आता है। इसलिए इस आयोजन को महा कुंभ कहते हैं। महा कुंभ 13 जनवरी से शुरू है जो 26 फ़रवरी को ख़त्म होगा। इस दौरान इसमें कुल 6 शाही स्नान होंगे, जिसमें से 3 अमृत स्नान हैं। करोड़ों श्रद्धालुओं को इस महा पर्व का बेसब्री से इंतज़ार था। कुंभ मेले का आयोजन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है, माना जाता है कि यह हिंदू धर्म की सबसे पवित्र और प्राचीन परंपराओं में से एक है। इस मेले के आयोजन के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं हैं। तो आइये जानते है इन्हीं कारणों के बारे में की आखिर क्यों लगता है महा कुंभ?

ज्योतिष गणनाओं के अनुसार यह मेला पौष पूर्णिमा के दिन आरंभ होता है और मकर संक्रांति इसका विशेष ज्योतिषी पर्व माना जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा, वार्षिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति को होने वाले इस योग को कुंभ स्नान योग कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है। वही पुरानी कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुंद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान अमृत का कलश (कुंभ)प्राप्त हुआ। जिसे असुरों से बचाने के लिए देवता भागने लगे और उसी दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नाशिक में गिर गई। इसलिए तब से इन स्थानों को पवित्र माना जाने लगा।

माना जाता है की कुम्भ मेला लगने का उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि कराने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही ये भी मान्यता है कि कुंभ के दौरान इस स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसमें आत्मा को शुद्धि मिलती है और पूर्ण जीवन सुख और समृद्धि से बीतता है। यह मेला साधु संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलने का मुख्य केंद्र है। जहाँ ज्ञान, भक्ति, और सेवा की प्राप्ति होती है।

हर 12 वर्ष में ही क्यों लगता है महाकुंभ?
इसके पीछे भी पौराणिक और ज्योतिष मान्यता है। मान्यताओं के मुताबिक अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान इंद्र के पुत्र जयंत को अमृत का कलश प्राप्त हुआ और वो वहाँ से भाग निकले। असुरों ने उनका पीछा किया और 12 दिनों तक असुरों और देवताओं के बीच यह युद्ध चला। पुराणों के अनुसार देवताओं के वह 12 दिव्य दिन मनुष्यों के लिए 12 वर्ष के बराबर होता है। इसी कारण महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्ष के बाद होता है। वहीं ज्योतिष गणना के अनुसार बृहस्पति 12 वर्ष में एक बार सभी राशियों का भ्रमण पूरा करता है। बृहस्पति की यह पूर्ण वृत्ति महा कुंभ के आयोजन का मुख्य आधार है। यही कारण है प्रत्येक 12 वर्षों में कुंभ का आयोजन चार स्थलों पर होता है। इसके अलावा 12 वर्ष का चक्र मानव जीवन में एक विशेष ऊर्जा परिवर्तन को दर्शाता है। यह समय आत्म शुद्धि, आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त माना जाता है।

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