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मिल्कीपुर में खिलेगा कमल या फिर से दौड़ेगी साईकिल

साख का सवाल बन चुकी मिल्कीपुर सीट पर बिछी सियासी बिसात

जन एक्सप्रेस। संतोष कुमार दीक्षित
राज्य मुख्यालय। उत्तर प्रदेश की हॉट सीटों में सुमार मिल्कीपुर सीट की चर्चा दिल्ली के विधानसभा चुनावों से भी ज्यादा हो रही है। इस सीट पर अब सियासी बिसात पूरी तरह से बिछ चुकी है। सभी दल जीत के लिए अपने-अपने दांव लगा रहे हैं। उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने भी पूरी ताकत झोंक दी है। इस सीट को जीतना भाजपा के लिए साख का सवाल बन गया है। कुंदरकी और कटेहरी की ही तरह ही यहां भाजपा विरोधी दलों को चारों खाने चित करने का प्लान तैयार कर चुकी है। सीएम योगी से लेकर आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री इस काम में जुटे हैं। उधर समाजवादी पार्टी भी उपचुनाव में धांधली होने की आशंका को लेकर सत्तासीन पार्टी को आड़े हाथों ले रही है और अपने कार्यकर्ताओं को हद से गुजर जाने की सीख दे रही है।

चंद्रशेखर ने आसान की बीजेपी की राहhttps://youtu.be/NwX3niIHnX0?si=tj572ZqiLl4ELHkp
मिल्कीपुर उपचुनाव में चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के बागी संतोष कुमार को टिकट देकर भाजपा की राह आसान बना दी है। वहीं सपा के सामने मुश्किलें आ सकती हैं। भाजपा ने यहां चंद्रभान पासवान को प्रत्याशी बनाया तो और समाजवादी पार्टी ने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है। तीनों ही उम्मीदवार पासी समुदाय से आते हैं। ऐसे में सपा का वोट बंट सकता है। वहीं इसका फायदा बीजेपी को मिलने की उम्मीद है।

मिल्कीपुर जीतकर आम चुनाव की टीस कम करना चाहती है भाजपा
यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के बराबर ही मिल्कीपुर उपचुनाव की अहमियत को आंका जा रहा है। क्योंकि, मिल्कीपुर का मामला सीधे अयोध्या के रिजल्ट से जुड़ा है, जहां फैजाबाद लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को हरा कर सीटअपने नाम कर ली थी। वो भी ऐसे दौर में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ ही विकास की चारों ओर गंगा बह रही थी। कहीं न कहीं बीजेपी मिल्कीपुर सीट को जीतकर आम चुनाव की टीस को कम करना चाहती है।

क्या 2027 का विजयी द्वार है मिल्कीपुर
प्रदेश में भले ही सर्दी चरम पर है, लेकिन राजनीति के अखाड़े की गर्माहट जारी है। भाजपा और सपा ने मिल्कीपुर सीट जीतने के लिए अपने-अपने योद्धा भी मैदान में उतार दिए हैं। मिल्कीपुर उपचुनाव बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव है – जिसका रिजल्ट अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ दोनों के लिए सियासी मशाल साबित होगा। राजनीतिक गलियारे में चर्चा इस बात की भी है कि मिल्कीपुर सीट जीतने वाले दल के लिए क्या 2027 की जीत का द्वार खुल सकेगा।

बसपा-कांग्रेस ने डाले हथियार
पांच फरवरी को दिल्ली चुनावों के साथ ही मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव होना है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही है। कांग्रेस और बसपा पहले ही चुनावी रेस से बाहर हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने उपचुनाव न लड़ने के पीछे धांधली को बजय बताया था।

यादव-पासी करेंगे जीत-हार का निर्णय
मिल्कीपुर सीट पर हार-जीत का निर्णय यादव और पासी समुदाय के वोटर करेंगे। यहां करीब 3 लाख 58 हजार मतदाता हैं। इनमें एक लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं। इन दलित मतदाताओं में भी सबसे ज्यादा 55 हजार वोट पासी समाज के हैं। करीब 60 हजार यादव वोटर भी हैं। मुस्लिम समाज के वोटों की संख्या भी ठीक ठाक है। सपा ने 2022 में बीजेपी से सीट छीनी थी। लेकिन सपा और भाजपा के साथ ही आजाद पार्टी के तीनों प्रत्याशी दलित समुदाय के होने के चलते वोट बंटेगा और इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।

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