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फैजाबाद लोकसभा: कांग्रेस और सपा के बीच जुगलबंदी, बिगड़ सकता है भाजपा का प्लान

फैजाबाद सीट पर अब तक किसी ने नहीं लगाई हैट्रिक

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  • अलग-अलग बरसों में मित्रसेन यादव और विनय कटियार तीन बार जीते; इस बार लल्लू सिंह के पास मौका

  • राम मंदिर के लिए मशहूर इस लोकसभा से बीजेपी पूरे देश में बना रही माहौल

  • कम्युनिस्ट पार्टी को भी मिल चुकी है एक बार जीत, इस बार वामपंथी नेताओं की परीक्षा भी…

जन एक्सप्रेस/डी.पी. शुक्ल
उत्तर प्रदेश की राम नगरी अयोध्या का माहौल पूरी तरह चुनावी हो गया है। 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद सूबे के साथ-साथ पूरे देश की सियासी हवाओं ने रुख बदला है। अयोध्या पहले फैजाबाद जिले में पड़ती थी, फिर जिले का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया। लेकिन संसदीय सीट अभी फैजाबाद के नाम से ही है। फैजाबाद सीट पर अभी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का कब्जा है और उसकी कोशिश यहां से भी चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने की है। अब यहां मुकाबला रोचक स्थिति में पहुंच चुका है। भाजपा उम्मीदवार वर्तमान सांसद लल्लू सिंह इस चुनाव में जीतते हैं तो उनकी जीत की हैट्रिक बन जाएगी। क्योंकि लोकसभा चुनाव में क्षेत्र से अब तक कोई प्रत्याशी हैट्रिक नहीं लगा सका है। आज हुए मतदान में शाम पांच बजे तक 57.6 फीसदी लोगों ने वोट कर दिया था। इसी के साथ ही यहां के प्रत्याशियों का भाग्य मतपेटी में बंद हो गया।
गौरतलब है कि अयोध्या शहर सरयू नदी के तट पर बसा हुआ है और यह एक धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगरी है। अयोध्या का पुराना नाम साकेत हुआ करता था। भगवान श्रीराम की पावन जन्मस्थली होने की वजह से यह शहर हिंदू धर्म के प्रति आस्था रखने वालों का अहम केंद्र भी है। प्राचीन काल में अयोध्या कौशल राज्य की राजधानी और रामायण की पृष्ठभूमि का केंद्र था। साथ ही भगवान श्रीराम की जन्मस्थली होने के कारण अयोध्या को मोक्षदायिनी और हिंदुओं की प्रमुख तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है।

साल 2019 के चुनाव में क्या रहा

छह नवंबर 2018 तक यह जिला फैजाबाद के नाम से जाना जाता था। इसी दिन योगी सरकार ने इस जिले का नाम बदलकर फैजाबाद की जगह अयोध्या कर दिया। इस सीट के तहत चार विधानसभा क्षेत्र अयोध्या जिले के और एक विधानसभा क्षेत्र बाराबंकी जिले का आता है। यहां पर दरियाबाद, मिल्कीपुर, बीकापुर, अयोध्या और गोसाईगंज विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां की तीन सीटों पर बीजेपी को तो दो सीटों पर समाजवादी पार्टी (सपा) को जीत मिली थी। साल 2019 के संसदीय चुनाव में फैजाबाद लोकसभा परिणाम को देखें तो यहां पर चुनाव कांटेदार रहा था। बीजेपी के लल्लू सिंह और सपा के आनंद सेन के बीच कड़ा मुकाबला था। आनंद सेन पूर्व सांसद मित्रसेन यादव के बेटे हैं। लल्लू सिंह को चुनाव में 529,021 वोट मिले तो आनंद सेन यादव के खाते में 463,544 वोट आए थे। कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल खत्री 53,386 वोट के साथ तीसरे पायदान पर थे। चुनाव में अंत तक बने रोमांचक जंग में लल्लू सिंह ने 65,477 मतों के अंतर से मुकाबला जीत लिया। तब के चुनाव में फैजाबाद संसदीय सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 17,83,699 थी, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,55,303 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,28,339 थी। इनमें से 10,87,121 (61.5%) वोटर्स ने वोट डाले। नोटा के पक्ष में चुनाव में 9,388 वोट पड़े।

फैजाबाद का संसदीय इतिहास

इस लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास को देखें तो साल 1980 के बाद से यह सीट किसी पार्टी के दबदबे में नहीं रही है। यहां पर वर्ष 1957 में पहली बार आम चुनाव हुआ। यहां से सबसे अधिक सात बार कांग्रेस को जीत मिली है तो पांच बार बीजेपी का भगवा परचम लहराया है। साल 1957 में कांग्रेस के राजाराम मिश्र सांसद चुने गए थे। वर्ष 1962 में कांग्रेस के बृजबंसी लाल को जीत मिली। 1967 और 1971 में कांग्रेस के ही राम कृष्णा सिन्हा को जीत मिली थी। कांग्रेस लगातार चार बार यहां से विजयी रही। साल 1977 के चुनाव में लोकदल के अनंतराम जायसवाल के खाते में जीत गई। हालांकि साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और जयराम वर्मा सांसद चुने गए।

वर्ष 1984 के चुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के पास ही रही और निर्मल खत्री सांसद हुए। साल 1989 के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को जीत मिली और उसके प्रत्याशी मित्रसेन यादव सांसद बने थे। साल 1991 में देश में राम लहर का असर दिखा और BJP को कई सीटों पर जीत मिली। इसमें फैजाबाद सीट भी शामिल है। राम लहर आंदोलन के नेताओं में बीजेपी के अग्रणी नेता रहे विनय कटियार को साल 1991 के चुनाव में जीत मिली। उसके बाद कटियार को साल 1996 और 1999 के चुनाव में भी जीत मिली। लेकिन 1998 के चुनाव में वह सपा के मित्रसेन यादव से चुनाव हार गए। साल 2004 के चुनाव में मित्रसेन यादव बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत भी गए। साल 2009 में कांग्रेस से निर्मल खत्री के खाते में जीत गई। तब कांग्रेस ने बेनी वर्मा को सपा से तोड़ लिया था और अच्छा प्रदर्शन किया था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और यह सीट फिर से बीजेपी के खाते में आ गई। बीजेपी के उम्मीदवार और पूर्व विधायक लल्लू सिंह ने 2014 के चुनाव में सपा के मित्रसेन यादव को 2,82,775 मतों के अंतर से हरा दिया। वर्ष 2019 के चुनाव में भी लल्लू सिंह सांसद चुने गए। लेकिन इस बार उनकी जीत का अंतर घटकर 65,477 मतों का ही रह गया। सांसद बनने से पहले लल्लू सिंह 1991 में अयोध्या से विधायक चुने गए थे। फिर वह 1993, 1996, 2002 और 2007 में भी विधायक चुने जाते रहे।

फैजाबाद सीट का जातिगत समीकरण

इस सीट का जातिगत समीकरण देखें तो यहां पर 84 फीसदी से अधिक आबादी हिंदुओं की है। यहां सबसे अधिक OBC वोटर्स हैं और उनकी संख्या करीब 26 फीसदी है। इसमें 13 फीसदी के करीब यादव वोटर्स आते हैं। सामान्य वर्ग के वोटर्स की संख्या 29 फीसदी से अधिक है। यहां पर करीब चार फीसदी दलित वोटर्स हैं। यही कारण है कि इस सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस बार चुनाव से पहले ही कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हो चुका है। पिछली बार इन दोनों दलों के वोटों को मिला लिया जाए तो BJP के लिए यहां पर रास्ता कठिन हो सकता है। उसके लिए जीत की हैट्रिक लगा पाना मुसीबत का सबब बन सकता है।
बाबरी मस्जिद विवाद से लेकर भव्य राम मंदिर बनने तक का सफर फैजाबाद लोक सभा सीट ने तय किया है। जिसके कारण दशकों से लोगों की नजर इसी पर बनी रही है। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो मिल्कीपुर विधानसभा में सपा ने जीत दर्ज की थी। वहीं रुदौली, बीकापुर, अयोध्या और दरियाबाद विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में गई थी। इससे पहले हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। समाजवादी पार्टी, बसपा ,कांग्रेस को यहां मुंह की खानी पड़ी थी।

फैजाबाद के सांसद की जीत-हार तय करते हैं बाराबंकी के मतदाता

फैजाबाद संसदीय क्षेत्र पर देश के साथ ही दुनिया भर की नजर है। वर्ष 2009 में कांग्रेस के डॉ. निर्मल खत्री के सिर जीत का सेहरा बंधा था। तब दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस को जीत मिली थी। सपा दूसरे नंबर पर रही। वर्ष 2014 में भाजपा से जीते लल्लू सिंह को कुल चार लाख, 91 हजार, 663 वोट मिले थे। इसमें दरियाबाद क्षेत्र के एक लाख, तीन हजार, 248 मतों का योगदान रहा। दूसरे स्थान पर रहे सपा के मित्रसेन यादव को कुल दो लाख, आठ हजार, 965 व दरियाबाद से 50 हजार, 390 वोट मिले थे। इस तरह दरियाबाद विधान सभा क्षेत्र से लल्लू सिंह की जीत 52 हजार, 858 मतों से हुई थी। वर्ष 2019 के चुनाव में लल्लू सिंह को संसदीय क्षेत्र में कुल मत पांच लाख, 28 हजार, 113 मिले थे। इसमें दरियाबाद विधान सभा क्षेत्र का योगदान एक लाख 24 हजार पांच मतों का था, जबकि दरियाबाद से सपा प्रत्याशी आनंद सेन को 96 हजार 881 मत मिले थे। इस तरह दरियाबाद से भाजपा की जीत का अंतर 27 हजार 124 मत रहा था। यूं कहें कि विधानसभा क्षेत्र दरियाबाद के वोटरों की दरियादिली लोक सभा चुनाव क्षेत्र फैजाबाद के परिणाम बदलती आई है। जिसके पक्ष में दरियाबाद के वोटरों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया, वह रामलला की जन्म भूमि अयोध्या (फैजाबाद) का सांसद चुना जाता है। रामसनेहीघाट व सिरौलीगौसपुर तहसील के 502 बूथ दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र में आते हैं। यहां चार लाख, छह हजार, 762 मतदाता निर्णायक की भूमिका निभाते हैं। दरियाबाद की सीमाएं अयोध्या जिले से लगी हैं।

बाराबंकी का हिस्सा रही रुदौली तहसील

अयोध्या जिले की रुदौली तहसील पहले बाराबंकी जिले का हिस्सा रही है, जिसकी वापसी के लिए हर माह वकील मुख्यमंत्री को ज्ञापन देते हैं। 18 सितंबर, 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने रुदौली तहसील को फैजाबाद (अब अयोध्या) में शामिल कर दिया था, लेकिन सपा सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 24 फरवरी, 2004 को रुदौली को फिर बाराबंकी में मिला दिया। प्रदेश की राजनीति ने करवट ली और बसपा सरकार आने पर 31 अक्टूबर, 2007 को फिर से रुदौली को मुख्यमंत्री मायावती ने फैजाबाद का हिस्सा बना दिया। रुदौली विधान सभा क्षेत्र भी है जो फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में हमेशा से शामिल रही है।
2019 में दरियाबाद में मिले मत
दल                   प्रत्याशी            मत
भाजपा             लल्लू सिंह        1,24,005
सपा (गठबंधन)  आनंद सेन          96,881

2014 में दरियाबाद में मिले मत
दल                प्रत्याशी               मत
भाजपा          लल्लू सिंह           1,03,248
सपा               मित्रसेन यादव        50,390
बसपा             जितेंद्र बब्लू            32,759
कांग्रेस            निर्मल खत्री            28,302
वर्ष 2009 के चुनाव पर नजर
कांग्रेस –     45,951
भाजपा-     20,483
सपा-          37,578
बसपा-        28,098

फैजाबाद से विनय कटियार और मित्रसेन तीन बार सांसद बने

लल्लू सिंह 2014 और 2019 में फैजाबाद लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। जबकि भाजपा के विनय कटियार 1991 और 1996 का लोकसभा चुनाव जीते। वे 1998 में चुनाव हार गए और 1999 में एक बार फिर भाजपा के टिकट पर फैजाबाद के सांसद बने। मित्रसेन यादव फैजाबाद लोकसभा से तीन बार सांसद हुए। वे 1989,1998 और 2004 में सांसद बने पर वे भी हैट्रिक नहीं लगा सके। कांग्रेस के टिकट पर डॉ. निर्मल खत्री 1984 और 2009 में फैजाबाद के सांसद बने। इस तरह फैजाबाद में लोकसभा के चुनाव में अब तक हैट्रिक कोई नहीं लगा सका है। लल्लू की हैट्रिक से भाजपा जीत का छक्का जड़ने में सफल हो जाएगी और कांग्रेस के सात जीत के रिकॉर्ड से मात्र एक जीत दूर रह जाएगी। कांग्रेस आजादी के बाद से अब तक सात बार इस सीट पर विजयी रही। दो बार कांग्रेस से निर्मल खत्री चुनाव जीते। साल 1977 से पहले तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ था। जातीय समीकरण ब्राह्मण, कुर्मी, अनुसूचित जाति व मुस्लिम का समीकरण उनके पक्ष में था।

भाजपा के विनय कटियार लगातार दो बार सांसद बने

इसके बाद इस सीट पर लगातार बदलाव होते रहे, भाजपा के विनय कटियार लगातार दो सांसद बने। एक चुनाव हारने के बाद वह फिर से चुने गए। मित्रसेन यादव यहां से तीन बार तीन अलग-अलग दलों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सपा और बसपा से सांसद रहे। आजादी के बाद हुए आम चुनाव में चार बार कांग्रेस के रामकृष्ण सिन्हा जीते। उन्होंने दो बार लगातार जीत दर्ज की। उनको हैट्रिक लगाने का मौका 1977 में दिया गया। लेकिन कांग्रेस विरोधी लहर में वह ऐसा करने में सफल नहीं रहे। निर्मल खत्री के अतिरिक्त वह ही अकेले प्रत्याशी थे जिन पर पार्टी ने लगातार भरोसा रखा। वहीं अब 2024 चुनाव में भाजपा जीतती है तो लल्लू सिंह की हैट्रिक होगी। इस लक्ष्य को पाने की राह आसान नहीं है। साल 2014 में मोदी लहर में दो लाख 82 हजार रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले लल्लू सिंह को पिछले 2019 के चुनाव में सपा-बसपा के संयुक्त प्रत्याशी आनंदसेन ने कड़ी टक्कर दी थी। और इस जीत के अंतर को 66 हजार पर ला दिया था।

इस बार लल्लू और अवधेश में कड़ी टक्कर, दोनों ने हारना नहीं सीखा

इस बार भाजपा का मुकाबला तीन बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद से है। लल्लू की तरह उन्होंने भी हारना नहीं सीखा है। अपने राजनीतिक जीवन में वह केवल दो बार चुनाव हारे। हालांकि वह लोकसभा चुनाव के रण में पहली बार उतरे हैं।

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