हाईकोर्ट का यूपी डीजीपी को निर्देश, सूचना एवं तकनीक से जुड़े अपराधो में जांच अधिकारी बरतें सावधानी
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म, आपराधिक धमकी देना और उसकी अश्लील वीडियो बनाकर प्रसारित करने के मामले में जांच अधिकारी द्वारा की गई विवेचना की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने यूपी के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि ऐसे मामलों में जो सूचना एवं तकनीक से जुड़ा हो उसके लिए प्रदेश में सभी जांच अधिकारियों के लिए निर्देश दिया जाय कि वे ऐसे मामलों की जांच में भविष्य में काफी सावधानी बरतें।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले चाहे आरोपी हो अथवा पीड़िता, उनके मौलिक अधिकारों के हनन से जुड़ा होता है। इसके अलावा, अदालत ने आदेश दिया कि पुलिस महानिदेशक डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए सुधारात्मक आदेश जारी करें।
न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने डिजिटल साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच अधिकारियों के उदासीन रवैये की कड़ी आलोचना की है। यह आदेश कोर्ट ने सौरभ @ सौरभ कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में दिया।
इस मामले में सामूहिक दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और नाबालिग लड़की के अश्लील वीडियो प्रसारित करने के आरोप शामिल हैं। मुख्य आरोपी सौरभ कुमार और एक सह-आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376डीबी और 506, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम ( पाक्सो) की धारा 5 जी और 5 एम/जी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत आरोप लगाए गए हैं।
अभियोजन पक्ष का आरोप है कि सौरभ कुमार और सह-आरोपी सेहबान ने एक नाबालिग लड़की को उसके स्कूल से बहला-फुसलाकर उसके साथ यौन उत्पीड़न किया। उन पर घटना का वीडियो बनाने और व्हाट्सएप के माध्यम से वीडियो प्रसारित करने का भी आरोप है। कथित तौर पर वीडियो पीड़िता के भाई के मोबाइल डिवाइस पर सामने आया। जिसके बाद तीन अप्रैल 2024 को प्राथमिकी थाना – अहरौला, जिला आजमगढ़ में दर्ज की गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता को आरोपियों ने ब्लैकमेल किया और धमकाया। जिन्होंने बाद में वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल कर दिया।
आरोपी पर आईपीसी की धाराएं 376 डीबी, 506 यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धाराएं 5 जी, 5 एम/जी, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 67 लगाई गई।
बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक सौरभ कुमार निर्दोष है और उसे परेशान करने और पीड़ित करने के लिए झूठा फंसाया गया है। बचाव पक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि आवेदक की संलिप्तता को दर्शाने वाला कोई ठोस सबूत नहीं है, क्योंकि एफआईआर में तारीख व समय का जिक्र नहीं है।
अदालत ने जांच अधिकारी द्वारा की गई तत्परता में उल्लेखनीय कमी देखी, जो कथित रूप से बरामद किए गए वीडियो साक्ष्य का विवरण नहीं दिया गया है। आरोपी के मोबाइल फोन की सामग्री की जांच करने या गैलरी की सामग्री को सत्यापित करने में अधिकारी की विफलता ने जांच की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए।
कोर्ट ने डिजिटल साक्ष्यों को संभालने में जांच अधिकारी की सतर्कता में कमी पाई । न्यायालय ने जांच अधिकारियों के “बेपरवाह रवैये” की निंदा की, जो केवल पेन ड्राइव में फोटो या वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को अपने कब्जे में ले लेते हैं और फिर बिना उचित जांच के उन्हें फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी को सौंप देते हैं।
न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा, “यह कृत्य केवल जिम्मेदारी से बचने का प्रयास प्रतीत होता है और इस कृत्य को रोकना होगा।” हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जांच अधिकारी द्वारा इस तरह की चूक से आरोपी और पीड़ित दोनों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सभी जांच अधिकारी भविष्य के मामलों में डिजिटल साक्ष्यों को संभालने में अधिक सतर्क रहें।
अदालत ने जांच अधिकारी को निर्देश दिया कि वह आवेदक के खिलाफ प्रसारित किए जा रहे वीडियो से संबंधित साक्ष्यों का विवरण देते हुए एक व्यक्तिगत हलफनामा कोर्ट में प्रस्तुत करे, जिसमें इसकी सामग्री भी शामिल हो।