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कितना पुराना है लाहौर: प्रभु राम के पुत्र लव ने बसाया था शहर?

इतिहास ने भी ऐसे ही कद्दावर नेता देखें हैं। जिनका असर आम लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। मोहनदास करमचंद गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना। कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जिन्हें इतिहास कभी भुला नहीं सकता। 16 अगस्त 1946 की एक तारीख हिन्दुस्तान की आजादी के इतिहास की ऐसी ही तारीख है जिसने बंटवारे की हकीकत पर मुहर लगा दी। जुलाई 1947 में जब भारत जैसे विशाल देश को दो हिस्सों में बांटा जाने लगा तो इंग्लैंड ने वकील सिरील रेडक्लिफ को ये जिम्मेदारी दी। जबकि इससे पहले उन्होंने ऐसा कोई काम किया ही नहीं था। आनन फानन में ब्रिटेन से बुलाए गए सिरील रेडक्लिफ से कहा गया था कि भारत के दो टुकड़े करने हैं। रेडक्लिफ न कभी भारत आए थे, न यहाँ की संस्कृति की समझ थी, बस भारत को बांटने का ज़िम्मा उन्हें सौंप दिया गया था। वो चाहते थे कि लाहौर को भारत के पास जाना चाहिए लेकिन उनके सामने एक मजबूरी आ गई। ऐसे में बताते हैं कि आखिर वो क्या मदबूरी थी की लाहौर जो हिन्दुओं का शहर था उसे पाकिस्तान को क्यों दे दिया गया?

पाकिस्तान का दिल जो कभी भारत के लिए धड़कता था

लाहौर पाकिस्तान का दिल कहा जाता है। लेकिन ये दिल कभी हिन्दुस्तान में भी धड़कता था। अंग्रेजों की नीतियों ने भारत और पाकिस्तान को धर्म के नाम पर अलग करवाया। लेकिन जब धर्म के नाम पर भारत के विभाजन की बात हो रही थी तो उस वक्त सभी दिग्गज जानकार का मानना था कि ये लाहौर भारत के हिस्से में ही आएगा। आज लाहौर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी है। करांची के बाद लाहौर पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला शहर है। लाहौर एक ऐसा शहर है जिसका अपना ही ऐतिहासिक महत्व है। ब्रिटिश शासन के दौरान भी इस शहर में विकास काफी तेजी से होता नजर आया था। आज पाकिस्तान के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा लाहौर से ही आता है। यही नहीं ताजपोशी के बाद महाराजा रंजीत सिंह ने लाहौर को ही अपनी राजधानी के रूप में चुना था। हालांकि बाद में लाहौर में दो बार उन्हीं राजा रंजीत सिंह की प्रतिमा को दो बार तोड़ा गया।

प्रभु राम के पुत्र लव ने बसाया शहर? 

रावी नदी के दाहिने तट पर बसा शहर लाहौर जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में लवपुर के नाम से मिलता है। कहा जाता है कि ये लवपुर प्रभु राम के पुत्र लव (लोह) ने बसाया था। लाहौर के किले में आज भी प्रभु श्रीराम के पुत्र लव का एक मंदिर विराजमान है। हालांकि मंदिर में पूजा अर्चना की अनमति नहीं है। जब भारत आजाद हुआ तो यहां लगभग 36 प्रतिशत हिन्दू और सिख वास करते थे। हालांकि कई इतिहासकार मानते हैं कि लाहौर को ईसवी सन की शुरुआत में बसाया गया। शत्रुंजय के एक अभिलेख में लवपुर या लाहौर को लामपुर भी कहा गया है। हिन्दू अनुश्रुतियों के अनुसार लाहौर नगर का प्राचीन नाम लवपुर या लवपुरी था। ये भी माना जाता है कि लाहौर के पास स्थित कुसूर नामक नगर को  लव के भाई कुश ने बसाया था। वाल्मिकी रामायण के अनुसार प्रभु राम के द्वारा लव को उत्तर और कुश को दक्षिण कोसल राज्य दिए जाने का उल्लेख्य मिलता है। लाहौर के पंजाब विश्विद्यालय में 8671 संस्कृत हिंदी की पांडुलिपियां पुस्ताकलय में आज भी सुरक्षित हैं।

कभी आर्य समाज का गढ़ था

हिंदू, मुगल, सिख, पठान और ब्रिटिश साम्राज्य की मिली-जुली संस्कृति वाला लाहौर कभी आर्य समाज का गढ़ था। यहां से संस्कृत ग्रंथ प्रकाशित हुआ और संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया गया। संस्कृत और भारत विद्या का सुप्रसिद्ध प्रकाशन मोतीलाल बनारसी दास की स्थापना भी लाहौर में हुई। बात करते हैं पाकिस्‍तान के कसुर शहर की जो लाहौर से करीब 53 किलोमीटर की दूरी पर है। इस शहर का नाम कुश के नाम पर पड़ा है। इतिहास के मुताबिक शहर का अस्तित्‍व 1525 में आया। कसुर वह शहर है जो सिंधु घाटी सभ्‍यता के समय से अपना परचम लहराए है। इस क्षेत्र पर कभी मौर्य वंश का शासन था, कभी यहां पर ग्रीक साम्राज्‍य देखा गया, कभी कुषाण शासन, गुप्‍ता वंश का शासन और काबुल के शाही साम्राज्‍य का राजकाज भी यहां से चलता था।

कैसे पाकिस्तान को मिला लाहौर

भारत की आजादी तय हो गई थी। लेकिन 4 जुलाई 1947 को ब्रिटेन की संसद ने भारत को बांटकर एक और देश पाकिस्तान बनाने पर मुहर लगा दी। सर सिरील रेडक्लिफ को भारत का मैप दिया गया और कहा गया कि अगले 10 से 12 दिनों में वो इस काम को कर डाले। कई शहर पाकिस्तान को दिए गए और कई को लेकर क्या तर्क दिए गए वो भी काफी रोचक हैं। भारत से बिल्कुल भी अंजान पेशे से वकील सिरील रेडक्लिफ ने बंटवारे की लकीरें खींचनी शुरू कर दी। यही कारण रहा कि बंटवारे के दौरान ऐसी कई गलतियां हुई कि कई स्थान इधर से उधर हो गए। फिर बंटवारे के बाद लाखों लोगों को जान भी गंवानी पड़ी। कहा जाता है कि रेडक्लिप खुद अपने काम से खुश नहीं थे। भारत से वापस लंदन जाने के बाद विभाजन से जुड़े सारे दस्तावेज और नक्शे को उन्होंने जला दिया था। बाद में भी उन्होंने इस मसले को लेकर ज्यादा बातें कभी नहीं की। विभाजन के बाद भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने रेडक्लिप से बात की थी। कुलदीप नैय्यर ने इस बाबत बीबीसी से इस बारे में बातचीत करते हुए रेडक्लिप की आपबीती सुनाते हुए कहा था कि मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए। उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया। न ही ज़िलों के नक्शे मेरे पास थे।

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