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क्यों टूटा सपा-कांग्रेस का गठबंधन?

नई दिल्ली : अखिलेश यादव ने I.N.D.I गठबंधन से किनारा कर लिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन टूटने की खबरों पर अभी दोनों दलों की ओर से कोई अंतिम घोषणा नहीं की गई है, लेकिन बताया जा रहा है कि दोनों दलों के बीच सीटों के तालमेल पर सहमति नहीं बन पाई और अंततः दोनों दलों ने अलग-अलग होकर चुनाव लड़ने का निर्णय कर लिया है। हालांकि, विश्वस्त सूत्रों का मानना है कि दोनों दलों में तालमेल टूटने का असली कारण सीटों पर तालमेल नहीं, कुछ और है, और अखिलेश यादव दबाव में आकर गठबंधन से बाहर जाने का रास्ता तलाश रहे हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल अभी भी दावा कर रहे हैं कि दोनों दलों के बीच सीटों पर बातचीत चल रही है और जल्दी ही सीटों पर आपसी तालमेल बन जाएगी। स्वयं अखिलेश यादव भी कुछ इसी तरह की बात कह रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के कई अन्य नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव ने गठबंधन से बाहर जाने के लिए ही कांग्रेस को ऐसी सीटों की पेशकश की है, जिसे स्वीकार करना उसके लिए संभव नहीं है। इसका परिणाम गठबंधन के टूटने के रूप में सामने आएगा। सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव को गठबंधन से बाहर जाने के लिए एक बहाना चाहिए था, और अंततः सीटों पर तालमेल न बनने को उन्होंने बहाना बनाया।

 गलत सीटें देकर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश

दरअसल, समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को जिन सीटों पर लड़ने का ऑफर दिया था, वह वहां काफी कमजोर स्थिति में है और वहां उसके उम्मीदवारों के जीतने की संभावना काफी कम है। जबकि वह जिन सीटों पर मजबूत है, उन सीटों को समाजवादी पार्टी ने अपने लिए रख लिया।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव ने ऐसा केवल इसलिए किया था, जिससे या तो कांग्रेस पूरी तरह झुककर उनकी बताई सीटों पर लड़े और हमेशा के लिए खत्म हो जाए, या गठबंधन तोड़ दे। गठबंधन टूटने से भी कांग्रेस को ही नुकसान होने की संभावना है। अंततः यही हुआ कि सीटों पर तालमेल को बहाना बनाकर उन्होंने गठबंधन को समाप्त कर दिया। कांग्रेस नेताओं के अनुसार, यह सब सोची-समझी स्क्रिप्ट थी, जिसे अखिलेश यादव पढ़ रहे थे।

कानपुर की सीट पर पेंच

सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव ने कांग्रेस को जो सीटें ऑफर की थीं, उसमें कानपुर की सीट शामिल नहीं थी। जबकि पिछले चुनाव में भी कांग्रेस उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल यहां से दूसरे नंबर पर रहे थे। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को कानपुर में 50 हजार वोट भी नहीं मिले थे, इसके बाद भी सपा इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रही थी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सीटों का यह बंटवारा ही बता रहा है कि अखिलेश गठबंधन को मजबूत करने की नीयत से काम नहीं कर रहे थे, बल्कि वे चाहते थे कि कांग्रेस स्वयं यह गठबंधन तोड़ दे।

सहारनपुर पर भी था पेंच

कांग्रेस सहारनपुर की सीट से स्वयं चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन अखिलेश यादव ने यह सीट भी उसे नहीं दी। पिछले चुनाव में सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान ने सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी, लेकिन इमरान मसूद यहां से कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार यदि सपा-कांग्रेस गठबंधन का उम्मीदवार यहां से उतरे तो उसकी जीत की संभावना बन सकती है। जबकि अखिलेश यादव कांग्रेस को यह सीट भी देने के लिए तैयार नहीं हैं।

लखनऊ पर दोनों की दावेदारी

लखनऊ की सीट पर दोनों दल दावेदारी कर रहे थे। पिछले चुनाव में राजनाथ सिंह को यहां से जीत हासिल हुई थी, जबकि दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की पूनम सिन्हा रही थीं। कांग्रेस उम्मीदवार आचार्य प्रमोद कृष्णम तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन इस सीट के महत्त्व को देखते हुए कांग्रेस लखनऊ पर अपनी दावेदारी ठोंक रही थी।

दबाव में काम कर रहे अखिलेश

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के ही कुछ नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव किसी दबाव में काम कर रहे हैं। कांग्रेस के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि यदि गठबंधन को मजबूत करने की सोच होती, तो जो दल जहां मजबूत है, उसे वहीं से सीटें ऑफर की जातीं। इससे जीत की संभावना बढ़ती, और भाजपा को रोकने में कामयाबी मिलती। लेकिन अखिलेश यादव जिस तरह सीटों का बंटवारा कर रहे हैं, उससे भी यही साफ होता है कि वे किसी दबाव में काम कर रहे हैं और वे नहीं चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन किसी भी प्रकार से मजबूत हो।

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