देश

सियासी झगड़े का क्यों बना हुआ है केंद्र बिंदु?

महाराष्ट्र में उद्धव गुट और शिंदे समूह के बीच चले आर हे सियासी घमासान पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने मामले को सात जजों की बेंच को रेफर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले कहा था कि महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जून 2022 में महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाकर कानून के मुताबिक काम नहीं किया, लेकिन वह उद्धव को बहाल नहीं कर पाएंगे। ठाकरे सरकार, क्योंकि उन्होंने परीक्षण का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया। अदालत ने यह भी कहा कि अध्यक्ष को उचित समय के भीतर 16 विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 2016 का नबाम रेबिया मामला जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, तो इसमें एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश के एक अल्पज्ञात पूर्व अध्यक्ष नबाम रेबिया महाराष्ट्र में 2,800 किमी दूर एक कड़वे राजनीतिक झगड़े के बीच चर्चा में कैसे आ गए।
क्या है नबाम रेबिया केस

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए अरुणाचल प्रदेश के बर्खास्त मुख्यमंत्री नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय पर मुहर लगा गी जिसमें कोर्ट ने कांग्रेस के बागी 14 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने पर रोक लगा दी थी।

अरुणाचल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

2016 के नबम रेबिया बना डेप्युटी स्पीकर केस के फैसले में भी अनुच्छेद 174 की यही व्याख्या की गई है। 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि सत्र बुलाने, स्थगित करने और भंग करने के अधिकार का इस्तेमाल राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेंगे। इस केस में अरुणचाल प्रदेश के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा ने विधानसभा का सत्र 14 जनवरी 2016 को बुलाया था। हालांकि, 20 बागी कांग्रेस विधायकों ने बीजेपी से हाथ मिला लिया और राजखोवा से मिलकर स्पीकर नबम रेबिया के साथ असंतोष जाहिर किया। राजखोवा ने कांग्रेस के बागी विधायकों के साथ मुलाकात के बाद सत्र को 16 दिसंबर 2016 के लिए पुनर्निर्धारित कर दिया। उन्होंने यह फैसला मंत्रिपरिषद से सलाह लिए बिना किया था। रेबिया राजखोवा की कार्रवाई के विरोध में सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट ने राजखोवा के सत्र पुनर्निर्धारण को अनुच्छेद 174 का उल्लंघन पाया और निरस्त कर दिया। नबाम रेबिया जजमेंट यह भी कहता है कि यदि राज्यपाल के पास यह मानने का कारण है कि मंत्रिपरिषद विश्वास खो चुका है तो वह मुख्ममंत्री को बहुमत साबित करने को कह सकते हैं।

एक राज्यपाल अपने विवेक का उपयोग कब कर सकता है?

अनुच्छेद 163 कहता है कि मुख्यमंत्री की अगुआई में मंत्रिपरिषद राज्यपाल को सलाह देगी और सहायता करेगी, लेकिन तब नहीं जब उन्हें संविधान के तहत अपना विवेकाधिकार इस्तेमाल करने की जरूरत होगी। जब मुख्यमंत्री सदन का समर्थन खो चुके हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button