उत्तराखंड

खेत में फसल की जगह किसान तोड़ रहे बोल्डर

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उत्तराखंड:   किसानों को उठाना पड़ रहा है। पिथौरागढ़ जिले में किसानों के खेत बर्बाद हो गए हैं। ऐसे में किसानों के पास आजीविका के लिए बोल्डर तोड़कर गुजारा करने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। सीमांत के आपदा प्रभावितों पर आपदा की मार के साथ ही सरकार व सरकारी मशीनरी की सुस्ती भी भारी पड़ रही है।आपदा ने घर छीन लिया तो उपजाऊ खेत मलबे और बोल्डरों से पट गए। अब हालात यह हैं कि जिन खेतों में आलू, राजमा का उत्पादन कर घर चलता था अब उनमें गिरे बोल्डरों को तोड़कर प्रभावित घर चलाने को मजबूर हैं। मुनस्यारी के 29 परिवार किसी तरह कभी सोना उगलने वाले अपने खेतों में रोड़ी तोड़कर अपना परिवार पाल रहे हैं।

लेकिन उनकी यह परेशानी व लाचारी किसी को नहीं दिख रही। मुनस्यारी के आपदा प्रभावित गांव धापा व गनघरिया गांव में कभी आलू व राजमा की फसल से लहलहाते खेतों में साफ नजर आ रहे रोड़ी के ढेर व वहां बिखरे बड़े-बड़े बोल्डर सरकारी मशीनरी की लापरवाही व आपदा प्रभावितों की लाचारी को बयां कर रहे हैं।

वर्ष 2013 से 2021 तक यहां सात से अधिक बार आई आपदा ने 83 परिवारों से सबकुछ छीन लिया। मकान क्षतिग्रस्त हो गए और खेत-खलिहान मलबे व बोल्डरों से पट गए। सरकार ने इनमें से 54 परिवारों को मुआवजा देकर विस्थापित किया। लेकिन 29 परिवारों को उनके हाल पर छोड़ दिया। ये परिवार किसी तरह टूटे मकानों में रहकर दिन बिता रहे हैं तो उनके सामने रोजगार का भी संकट पैदा हो गया है।

आपदा से पूर्व ये परिवार आलू-राजमा का उत्पादन कर अपना परिवार पाल रहे थे। अब हालात यह हैं कि जिस आपदा ने उन्हें गहरी चोट देते हुए उनके खेत-खलिहान बोल्डरों से पाट दिए, उन्हीं बोल्डरों को तोड़कर उन्हें अपना घर चलाना पड़ रहा है। बर्बाद हो चुके खेतों में ये परिवार रोड़ी तोड़कर जीवन को पटरी पर लाने की जद्दोजहत में जुटे हैं।

चाचा को मिला मुआवजा तो भतीजे से फेरी नजर
सालों से आपदा की मार सह रहे धापा व गनघरिया के प्रभावितों को मुआवजा बांटने में भी सरकार ने दोहरी नीति अपनाई है। प्रभावितों ने कहा दोनों गांवों में 83 प्रभावित विस्थापन की जद में आए। इनमें से महज 54 परिवारों को विस्थापित कर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। कहा चाचा को मुआवजा दिया गया तो अपना सबकुछ गंवा चुके भतीजे को अब तक मुआवजे का एक रुपया भी नहीं मिल सका है। मेरे चाचा को सरकार ने मुआवजा देकर उन्हें राहत पहुंचाई। लेकिन उन्हीं की तरह मेरा घर व जमीन आपदा की भेंट चढ़ गए। लेकिन अब तक मुझे मुआवजा नहीं मिला है। अब खेतों में पड़े बोल्डरों को तोड़कर रोजगार चला रहे हैं तो टूटे घरों में रहकर समय बिता रहे हैं।
चरन ढोकटी, धापा।

जिन खेतों में आलू-राजमा का उत्पादन कर गांव का हर परिवार अपनी आजीविका चलाता था अब उनमें पड़े बोल्डरों को तोड़कर रोजगार खोज रहा है। प्रभावितों की ऐसी अनदेखी पहले कभी नहीं देखी। हर बार जल्द मुआवजा देने की बात कर जिम्मेदार अधिकारी हमारी परीक्षा ले रहे हैं।
मुन्ना ढोकटी, पूर्व प्रधान, धापा।

गनघरिया व धापा में 83 परिवार प्रभावित हुए थे, जिनमें से 54 परिवारों को मुआवजा दिया गया है। शेष परिवारों के मुआवजे का प्रस्ताव शासन में भेजा गया है। मुआवजे की कार्रवाई गतिमान है।
2018 के आपदा प्रभावितों को नहीं मिला मुआवजा
धारचूला ब्लॉक सभागार में सरकार और समुदाय के साथ आदान प्रदान कार्यशाला का आयोजन किया गया। अर्पण संस्था ने एक्शन एड के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में महिलाओं ने अपनी समस्याओं को रखा। अर्पण संस्था की खीमा जेठी ने कहा कि ग्राम स्तरीय मुद्दों का समाधान, चामी व चिफलतरा के आपदा प्रभावतों को मुआवजा न मिलना,खोतिला के आपदा प्रभावितों का पुनर्वास सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई।

कहा कि चिफलतरा के 24 परिवारों को चार वर्ष बाद भी कोई सहायता राशि नहीं मिली है। चामी, घट्टाबगड, किमखोला, भक्तिरवा, गैरागांव, घाटीबगड, कालिका,देवल देहात, गोठी, निगालपानी, खोतिला की महिलाओं ने अपनी समस्याएं रखी।

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