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संसद भवन के ‘शेर’ को लेकर दायर याचिका खारिज

नए संसद भवन में लगाई गई शेर की मूर्ति को लेकर दायक की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। याचिका में दावा किया गया था कि नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन ने भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम 2005 का उल्लंघन किया है। मूर्ति के आक्रामक होने के दावे भी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ये व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर करता है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर करते हुए कहा कि हमने प्रतीक को देखा और इसमें कानून का उल्लंघन नहीं किया गया।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के हिस्से के तहत संसद भवन पर शेर की मूर्ति स्थापित की गई थी। जिसके बाद से ही राजनीतिक दलों की ओर से इसको लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। जुलाई में दो अधिवक्ताओं, अल्दानिश रीन और रमेश कुमार मिश्रा द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिन्होंने तर्क दिया था कि प्रतीक में चित्रित शेर “क्रूर और आक्रामक” प्रतीत हो रहे हैं। मूर्ति के शेर के मुंह खुले हैं और दांत भी बाहर दिखाई दे रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि मौर्य सम्राट अशोक की पूर्ववर्ती राजधानी सारनाथ में जो मूल प्रतीक था, वह “शांत और रचित” था और बुद्ध के चार मुख्य आध्यात्मिक दर्शन का प्रतिनिधि था। न्यायाधीशों ने कहा कि प्रतीक जो प्रभाव देता है वह व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर करता है। 12 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कांस्य से बने नए राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया गया था। यह 6.5 मीटर ऊंचा है और इसका वजन 9,500 किलोग्राम है।

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