
जन एक्सप्रेस नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने पार्टी नेतृत्व में कुछ नेताओं के साथ मतभेदों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि कांग्रेस उनके लिए बेहद प्रिय है, लेकिन पार्टी के भीतर कुछ मुद्दों पर उनकी राय भिन्न है। थरूर का यह बयान ऐसे समय आया है जब पार्टी में आंतरिक असहमति और संवाद की कमी को लेकर चर्चाएं तेज हैं।
थरूर ने कहा, “कांग्रेस में कुछ नेताओं से मेरी राय अलग है। आप जानते हैं कि मैं किन मुद्दों की बात कर रहा हूं, क्योंकि यह बातें सार्वजनिक हो चुकी हैं और मीडिया में इन पर पहले से चर्चा हो चुकी है।” हालांकि उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि यह मतभेद शीर्ष नेतृत्व से हैं या प्रदेश स्तर के नेताओं से।
“16 वर्षों तक पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा रहा”
थरूर ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं की प्रशंसा करते हुए कहा, “मैंने कांग्रेस के साथ 16 साल तक काम किया है। पार्टी के कार्यकर्ता मेरे अपने भाई और मित्र जैसे हैं। उनके साथ मेरा संबंध गहरा है।” उन्होंने यह भी कहा कि उनका समर्पण कांग्रेस के सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति हमेशा से रहा है।
“जहां बुलावा नहीं आता, वहां नहीं जाता”
जब उनसे पूछा गया कि वह उपचुनाव प्रचार में क्यों शामिल नहीं हुए तो उन्होंने दो टूक कहा, “मैं वहां नहीं जाता, जहां मुझे बुलाया न गया हो।” थरूर ने यह भी बताया कि पिछले उपचुनावों में उन्हें आमंत्रित किया गया था, लेकिन इस बार नीलांबुर उपचुनाव में नहीं।
“मेरी निष्ठा भारत की विदेश नीति के प्रति”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाल में हुई उनकी मुलाकात पर थरूर ने सफाई दी कि यह एक प्रतिनिधिमंडल की बैठक थी और उसमें ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के अंतर्गत विभिन्न देशों की यात्राओं और विदेश नीति से जुड़े मुद्दों पर बातचीत हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि इसमें किसी प्रकार की घरेलू राजनीति की चर्चा नहीं हुई।
“मैंने यह पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि बतौर विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष, मेरा ध्यान भारत की विदेश नीति पर रहेगा — न कि कांग्रेस या बीजेपी की नीति पर। जब देश से जुड़ा विषय आता है, तो वह दल से ऊपर होता है।”
थरूर ने यह भी कहा कि केंद्र ने जब उनकी सेवाएं मांगीं, तो उन्होंने एक भारतीय नागरिक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया।
थरूर का यह बयान कांग्रेस के भीतर चल रही वैचारिक उठापटक और नेतृत्व के साथ संवादहीनता की स्थिति को उजागर करता है। यह बयान ऐसे समय आया है जब पार्टी संगठनात्मक मजबूती की कोशिशों में जुटी है। अब देखना होगा कि उपचुनाव के बाद थरूर और पार्टी नेतृत्व के बीच यह मतभेद खुलकर सामने आते हैं या सुलझ जाते हैं।