जन एक्सप्रेस, चित्रकूट: जिले की मानिकपुर तहसील में बच्चों का बचपन कचरे के ढेर में दबता नजर आ रहा है। शिक्षा की उम्र में जहां इनके हाथों में किताबें होनी चाहिए, वहां कचरे की बोरियां हैं। ये मासूम बच्चे गलियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के आसपास कबाड़ तलाशते हुए देखे जा सकते हैं। जब इन बच्चों से पूछा गया कि वे स्कूल क्यों नहीं जाते, तो उन्होंने आर्थिक तंगी और सरकारी स्कूलों की जानकारी न होने का हवाला दिया। उनका पूरा दिन दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने में गुजर जाता है, और पढ़ाई उनके लिए एक सपना बनकर रह गई है।
शासन-प्रशासन की उदासीनता से टूट रहा बचपन
शासन और प्रशासन की लापरवाही इन बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रही है। पेट की भूख मिटाने के संघर्ष में ये बच्चे शिक्षा और बचपन दोनों से वंचित हो रहे हैं। इनके लिए न कोई सरकारी योजनाओं की जानकारी है और न ही उन तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। पढ़ाई-लिखाई का अधिकार केवल कागजों में सिमटकर रह गया है, जबकि इन बच्चों की जिंदगी कचरे की ढेर में गुजर रही है। सरकार और समाज के प्रयासों के बिना इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय नजर आता है। जरुरत है कि शासन-प्रशासन इनकी समस्याओं को गंभीरता से ले और इनके बचपन को वापस लाने के लिए ठोस कदम उठाए।