जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित बोल पर गर्माई राजनीति
कठमुल्ला देश के लिए घातक, बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा देश
जन एक्सप्रेस, राज्य मुख्यालय
संतोष कुमार दीक्षित: इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के एक विवादित बयान पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। राजनीतिक दलों के नेता खुलकर उनके बयान की कड़े शब्दों में निंदा कर रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे जजों से अल्पसंख्यक न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में हाई कोर्ट के मौजूदा जज शेखर कुमार पहुंचे थे। उन्होंने यहां समान नागरिक संहिता (यूसीसी) समेत कई मुद्दों पर अपनी बात रखते यूसीसी को देश के लिए जरूरी बताया। इस दौरान मंच साझा करते हुए जज जस्टिस शेखर कुमार ने मुसलमानों के लिए कठमुल्ला शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने चरमपंथियों को “कठमुल्ला” कहा और सुझाव दिया कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हिन्दुस्तान बहुसंख्यकों के हिसाब से ही चलेगा। उन्होंने कहा कि इसे परिवार या समाज के संदर्भ में देखें, केवल वही स्वीकार किया जाएगा, जो बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी के लिए फायदेमंद हो। इस मौके पर हाईकोर्ट के एक अन्य न्यायाधीश जस्टिस दिनेश पाठक भी मौजूद थे।
हलाला, तीन तलाक पर साधा निधाना
जज शेखर यादव ने मुस्लिम समुदाय का नाम लिए बिना उन पर जमकर हमला बोला। कहा कई पत्नियां रखना, तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाएं “अस्वीकार्य” हैं। उन्होंने कहा कि “अगर वे कहते हैं कि हमारा पर्सनल लॉ इसकी अनुमति देता है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते, जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी की मान्यता दी गई है। आप चार पत्नियां रखने, हलाला करने या तीन तलाक के अधिकार का दावा नहीं कर सकते। आप कहते हैं, हमें तीन तलाक देने और महिलाओं को भरण-पोषण न देने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार काम नहीं करेगा।”
सनातन धर्म की कुरीतियों का हुआ अंत
न्यायधीश यादव ने स्वीकार करते हुए कहा कि सनातन धर्म में भी बाल विवाह और सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां थीं, लेकिन राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इन प्रथाओं को खत्म करने के लिए संघर्ष किया और आज समाज इन प्रथाओं से पूरी तरह मुक्त है। आज विधवा विवाह भी होता है और बेटी को माता का रूप में पूजा जाता है।
जीवों पर दया करना हिन्दुओं के संस्कार में
जस्टिस यादव ने आगे कहा कि , “हमारे देश में हमें सिखाया जाता है कि छोटे से छोटे जानवर को भी नुकसान न पहुंचाएं। चींटियों को भी न मारें और यह सीख हमारे अंदर समाई हुई है। शायद इसीलिए हम सहिष्णु और दयालु हैं। जब दूसरे पीड़ित होते हैं, तो हमें दर्द होता है, लेकिन आपकी संस्कृति में, छोटी उम्र से ही बच्चों को जानवरों का वध करने के बारे में बताया जाता है। आप उनसे सहिष्णु और दयालु होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?”
एक देश एक दंडात्मक कानून होना चाहिए
जस्टिस यादव ने देश भर में समान नागरिक संहिता की उम्मीद जताते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में वक्त लगा, लेकिन “वह दिन दूर नहीं जब यह साफ हो जाएगा कि अगर एक देश है, तो एक दंडात्मक कानून होना चाहिए। जो लोग धोखा देने या अपना एजेंडा चलाने की कोशिश करते हैं, वे लंबे वक्त तक नहीं टिकेंगे।”
कठमुल्ला शब्द के इस्तेमाल पर भड़के ओवैसी
हैदराबाद सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि, ‘एक हाई कोर्ट के जज ने ‘कठमुल्ला’ शब्द का प्रयोग किया और भारत में मुसलमानों के लिए शर्तें निर्धारित कीं (जैसे कि हमें उनकी अनुमति की आवश्यकता हो)। हैदराबाद के सांसद ने अपनी पोस्ट में ‘रिस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूस ऑफ ज्यूडिशियल लाइफ’ (1997) से कुछ हिस्से भी साझा किए, जिसमें न्याय व्यवस्था में शामिल जजों को अपनी भूमिका और व्यवहार को लेकर सजग रहने की सलाह दी गई है।
न्यायपालिका की साख को कमजोर करते हैं ऐसे बयान
नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘प्रयागराज यूपी में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव का बयान न्यायिक गरिमा, संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और समाज में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी का गंभीर उल्लंघन है। ‘कठमुल्ला’ जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है। ऐसे बयान समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं, जो न्यायपालिका जैसे पवित्र संस्थान के लिए अक्षम्य है. एक न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह अपने शब्दों और कार्यों से समाज को एकजुट करे, न कि वैमनस्य को बढ़ावा दे। ऐसे बयान न्यायपालिका की साख को कमजोर करते हैं और जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं। न्यायाधीश का धर्म केवल न्याय होना चाहिए, न कि किसी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह।
अक्सर चर्चाओं में रहने वाले जस्टिस शेखर यादव के बारे में जानें
जस्टिस यादव वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं। 16 अप्रैल, 1964 को उनका जन्म हुआ। यादव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानूनी शिक्षा प्राप्त की। 1988 में कानून की डिग्री के साथ स्नातक किया। 1990 में उन्होंने एक वकील के रूप में नामांकन कराया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुख्य रूप से सिविल और संवैधानिक कानून पर केंद्रित कानूनी करियर की शुरुआत की।
जज शेखर यादव ने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता और स्थायी वकील के रूप में काम किया और बाद में अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील की ज़िम्मेदारी संभाली। उन्होंने भारत संघ और रेलवे के लिए वरिष्ठ पैनल वकील के रूप में भी काम किया और वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के स्थायी वकील के रूप में प्रतिनिधित्व किया। 12 दिसंबर 2019 को जस्टिस यादव को इलाहाबाद हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 26 मार्च 2021 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख 15 अप्रैल 2026 है।
विवादों से जस्टिस यादव का गहरा नाता
जस्टिस शेखर कुमार यादव का विवादों से गहरा नाता रहा है। मुस्लमानों को टारगेटेड हालिया बयान के अलावा जज साहब पहले भी कई विवादित बयान दे चुके हैं। इससे पहले साल सितंबर 2021 में गोहत्या अधिनियम के तहत गायों की चोरी और तस्करी के आरोपी एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए विवादित बयान से वे सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने की मांग करने के साथ ही गोरक्षा को ‘हिंदुओं का मौलिक अधिकार’ घोषित करने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिक का मानना है कि गाय एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन छोड़ता है। उसी साल, उन्होंने चुनाव आयोग को कोविड-19 के खतरे की वजह से चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाने और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव स्थगित करने का “सुझाव” दिया था।
भगवद्गीता और रामायण जैसे ग्रंथों को सम्मान देने के लिए बने कानून
अक्टूबर 2021 में जस्टिस यादव ने केंद्र सरकार से भगवान राम, भगवान कृष्ण, रामायण, महाभारत, भगवद गीता और अन्य को सम्मान देने के लिए एक कानून लाने की अपील। जज यादव ने कहा था कि राम इस देश के हर नागरिक के दिल में बसते हैं, वह भारत की आत्मा हैं। इस देश की संस्कृति राम के बिना अधूरी है। भगवान कृष्ण और राम के सम्मान के लिए कानून लाने के साथ देश के सभी स्कूलों में इसे अनिवार्य विषय बनाकर बच्चों को शिक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति सुसंस्कृत बनता है और अपने जीवन मूल्यों और अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक होता है।
‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ चार्टर का उल्लंघन है जस्टिस यादव का बयान
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1997 में ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ नामक चार्टर अपनाया था जिसके अंतर्गत 16 बिंदुओं को स्पष्ट किया गया था जो एक न्यायायिक लाइफ के बारे में स्पष्ट करतें हैं। जस्टिस यादव का विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में जाना ही न्यायायिक लाइफ का उल्लंघन है। जैसा कि 8वें और 16वें बिन्दु से स्पष्ट है।